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भीगे मन और तन होली में
Sector 93 Noida

भीगे मन और तन होली में

फाल्गुन का संदेश लिए मंद मंद हवाएं चल पड़ीं हैं। जगह जगह, लकड़ियों के ढेर लगे हैं, होलिका जलाने की तैयारी पूरी हो चुकी है। और बच्चे? इन्हें तो पूछो ही मत- लाल पीले रंगे चेहरे… गुब्बारों में रंग भरे हुए, बस शिकार की तलाश है कि किसे भिगोया जाय। होली तो हफ्ता 10 दिन पहले ही शुरू हो जाती है। घरों मे गुझिया बननी शुरू… उत्सव का वातावरण बन जाता है। यह त्यौहार ही मौज मस्ती का है। उन्मुक्तता का है। हास परिहास का है। देखा जाय तो खुले मन का त्यौहार है एक बार फिर बचपन जीनें का त्यौहार है। हमारी सोसायटी, ऐ.टी.एस. विलेज, में भी होली बखूबी खेली गई।

कई दिन पहले से बच्चों की शरारतें तो शुरू हो ही गईं थीं। पूरा माहौल बन चुका था। और फिर होली का दिन आ ही गया। आज तो कोई संकोच नहीं बड़े हों या बूढ़े, थोड़ा बचपन तो सब में समाया हुआ है। उसी को जी लेने का तो मौका है होली! यहां संगीत, रंग सब कुछ हवा में घुल चुका था, होली की खुमारी थिरकते पांवों को रूकनें कहां दे रही थी? सब मगन थे ‘‘रेन डांस’’ में भीगते रहें थिरकते रहे। साथ में त्यौहार मनानें का आनंद ही कुछ और होता है।

हंसी ठिठोली भी चलती रही। यही आनंद के क्षण हैं, इस त्यौहार की यही खूबी है इसका उन्माद ही इसका आनंद है। इसकी पगलाहट ही इसका आनंद है। थिरकते पांव तो नहीं थके, लेकिन समय तो आ चुका था भोजन का। बहुत सुस्वादु भोजन, जो किसी भी त्यौहार की पूर्णता है, सबने छक कर खाया। और घर की राह ली। तन और मन को भिगो गई थी होली!

सखी सहेली का होली उत्सव 22 मार्च की मीटींग में मनाया गया। अब फाल्गुन की मतवाली बयार हो चल रही हो तो कैसे रूके कोई? होली की बैठक तो होनी ही चाहिए! तो अबकी बार और कुछ नहीं, सिर्फ होली का आनंद लेने का ही दिन था। बैठक थी कुसुम जी के घर उन्होंनें ही इसका आयोजन किया था। सभी सदस्यों ने खुले मन से इस कार्यक्रम में भाग लिया। फाग गाए, नृत्य किए… हंसी ठिठोली और चटोरी जिह्वा को तृप्त करनें वाले व्यंजन। और क्या बाकी रहा? फाग तो हो गई…