भारतीय मान्यताओं के अनुसार, प्रतिवर्ष अश्विन मास में प्रारंभ के 15 दिन पितृ पक्ष, यानि श्राद्ध के रूप में मनाए जाते हैं। इस श्राद्ध की अवधि में पृथ्वी पितृ लोक के सबसे निकट होती है। पूर्वजों के लिए किए गए किसी भी कार्य का प्रभाव उन तक सीधा पहुँचता है, इसलिए लोग भोजन आदि अर्पित करते हैं। पितरों का आशीर्वाद पाने और उन्हें मुक्ति दिलाने के लिए इस समय भागवत कथा का आयोजन किया जाता है, जिसे कहने या सुनने के लिए बहुत शुभ माना जाता है।
संक्षेप में कथा का वर्णन है कि तक्षक सर्प द्वारा डसने पर राजा परीक्षित की मृत्यु सात दिन के बाद होनी थी। तब उन्होंने राजकाज अपने पुत्रा को सौंप दिया और खुद नदी किनारे तप के लिए चले गए। वहीं पर व्यास पुत्रा शुकदेव जी ने पहली बार भागवत कथा परीक्षित को सुनाई।
अभिमन्यु के पुत्रा परीक्षित जी ने श्री मद भागवत पुराण की कथा सुनने की इच्छा प्रकट की, पर उनके पास श्राप के कारण केवल सात दिन थे। अब 12 स्कन्द की कथा सात दिन में कैसे सुनाई जाए, इसका उपाय व्यास पुत्रा शुकदेव ने बताया। उन्होंने सब स्कन्द की मूल कथा सुनाई, जो कि भागवत पुराण का सार थी। सुखसागर में इस कथा का वर्णन है, और सात दिन की कथा सुखसागर से ही सुनाई जाती है।
मुख्य रूप से इसमें बताया गया है कि मनुष्य को मृत्यु के समय भयभीत या व्याकुल नहीं होना चाहिए। सभी इंद्रियों को वश में करके दीपक की लौ की तरह भगवान में ध्यान लगाना चाहिए। हमें समझना चाहिए कि जल, वायु, अग्नि, आकाश और पृथ्वीकृपंच तत्व, अहंकार और प्रकृति इन सात पदों से युक्त संपूर्ण ब्रह्मांड भगवान का ही शरीर है। अतः बुद्धि और ज्ञान से अपने मन को वश में करके भगवान के विराट रूप का ध्यान करना चाहिए।
हमारा सौभाग्य है कि भागवत कथा का आयोजन पहली बार बर्च स्ट्रीट, मालिबू टाउन में स्थित संकट मोचन हनुमान मंदिर के प्रांगण में किया गया। स्वामी अपूर्वानंद गिरी जी के सानिध्य में व्यास नर्मदा प्रिया जी के श्री मुख से यह कथा सुनाई गई। उनकी शैली और प्रस्तुति अत्यंत उत्कृष्ट थी। श्रोता मंत्रामुग्ध हो गए, और भजन-कीर्तन भी चलता रहा। स्वच्छता और व्यवस्था का पूरा ध्यान रखा गया। लगभग 500 लोगों ने प्रतिदिन कथा का आनंद उठाया। प्रसाद वितरण भी सही ढंग से शांतिपूर्ण हुआ।
ऐसे आयोजन मालिबू टाउन में होते रहने चाहिए ताकि हम आने वाली पीढ़ी को भारतीय संस्कारों से अवगत करा सकें।
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