यत्रा नार्यस्तु पूज्यंते, रमंते तत्रा देवता ‘कह कर प्राचीन काल से ही नारी को अत्यंत महत्व दिया गया है। मुगल काल में नारी की इस प्रतिष्ठा में अवनति हुई क्योंकि परदे में रहने के कारण उसे शिक्षा से वंचित रहना पड़ा और वह केवल भोग्या बन कर रह गई। किन्तु समय ने पाला बदला और आज नारी को अपना पुराना गौरव फिर से प्राप्त हो रहा है।
अन्तर राष्ट्रीय महिला दिवस जो 8 मार्च को सभी देशों में मनाया जाता है, 1911 से प्रारंभ हुआ जिसने महिलाओं में आत्मविश्वास और उत्उसाह जागृत किया और तब से निरंतर महिलाएं प्रगति के नये कीर्तिमान स्थापित करती जा रही हैं चाहे वह विज्ञान के क्षेत्रा में हो अथवा कला, प्रशासन, शिक्षा, खेल या किसी भी क्षेत्रा में हो।
वेलिंगटन में एक दिन भ्रमण करते समय मैंने पुरुषों के एक समूह में उस पंक्ति के संबंध में वाद- विवाद सुना, जिसे कतिपय देश विरोधी तत्वों ने अपना शस्त्रा बना कर हमारी सभ्यता और संस्कृति पर प्रहार करने का दुस्साहस किया है और वह पंक्ति है।
‘ढ़ोल गँवार, शूद्र, पशु, नारी, सकल ताड़ना के अधिकारी। जो रामचरित मानस के सुंदर कांड में है।
विचार करना चाहिए कि जिस तुलसीदास ने रामचरित मानस के सबसे पहले श्लोक में ही वंदे वाणी विनायका ‘कह कर माता सरस्वती की, दूसरे श्लोक में भवानी शंकरौ कह कर पहले माँ पार्वती की, चैथे में’ सीताराम गुणग्राम कह कर माता सीता की और पांचवें पूरे श्लोक में ‘उद्भव स्थिति संहारिणी’ कह कर सीता जी की वंदना करने के बाद ही छठवें श्लोक में श्री राम की वंदना की है, यह क्या उनके हृदय में नारी के प्रति सम्मान को नहीं दर्शाती? जो ब्रह्मा विष्णु महेश से भी अधिक पूज्य उनकी पत्नियों को मानता है, क्या वह नारी के लिए इन अपमान जनक शब्दों को कह सकता था?
हर प्राचीन ग्रंथों में मिलावट होती रही है। उदाहरण के लिए महा भारत महर्षि वेद व्यास द्वारा रचित है जिसमें उन्होंने 8800 श्लोक लिखे और पांडवों की विजय के कारण इसका नाम जय रखा। बाद में आचार्य वैशंपायन ने इसमें 24000 श्लोक और जोड़ कर इसका नाम भारत रखा, इसके बाद महर्षि सौटि ने इन दोनों को मिलाकर कुछ और श्लोक जोड़ने के बाद इसे महाभारत नाम दिया। इस प्रकार महाभारत में 1,00,000 से भी अधिक श्लोक हो गए। इस उदाहरण से यह स्पष्ट है कि प्राचीन काल में पुस्तकों के न छपने के कारण काट छाँट और मिलावट का काम प्रायः होता रहा है। रामचरित मानस के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ है।
मेरे विचार से तुलसीदास ने या तो यह चैपाई लिखी ही नहीं, यह बाद में मिलाई गई है, या अगर लिखी भी हो तो उसका रूप यह रहा होगा ढोल, गँवार, शूद्र, पशु चारी सकल ताड़ना के अधिकारी। चारी शब्द यहाँ सार्थक प्रतीत होता है क्योंकि चारी के पहले चार का ही उल्लेख है और जिसे बाद में चारी के स्थान पर नारी कर दिया गया। इसी तरह मानस में तुलसी ने केवल सात कांडों का उल्लेख किया है सप्त प्रबंध सुभग सोपाना’ तो फिर आठवां लव कुश कांड भी तो तुलसी का लिखा हुआ नहीं है इसे मानस में कैसे मिलाया गया? इन सब बातों पर विस्तृत छान बीन की आवश्यकता है।
by Sheela Srivastava (Wellington Est, 9350983615)
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