शारदीय नवरात्रि 15 अक्टूबर से प्रारंभ हुयी। मंदिर में माँ भगवती के नौ स्वरूपों की पूजा अर्चना, भजन कीर्तन की तैयारी जोर शोर से शुरू हो गयी थी।
नवरात्रि के प्रथम दिन सुबह विधिवत कलश स्थापना के साथ नवरात्रि उत्सव प्रारंभ हुआ। कलश के साथ ही मिट्टी के पात्रा में जौ बोये गये। नवरात्रा में जौ बोने के पीछे मान्यता है कि सृष्टि की शुरूआत मे सबसे पहली फसल जौ की थी। अन्न ब्रम्ह है इसलिये हमें अन्न का सम्मान करना चाहिये। पूरे मंदिर की भव्य सजावट और माता रानी के दरबार की छटा देखते ही बन रही थी।
सुंदर वस्त्रों मे सजे भगवान, फूलों से सुसाज्जित भवन अपनी ओर आकर्षित कर रहे थे। माँ भगवती के रूप और श्रृंगार को आँखे अपने भीतर आत्मसात करने को आतुर थी।
प्रतिदिन सांय 4 बजे से पंडित जी द्वारा दुर्गा सप्तशती का पाठ और फिर सेक्टर की महिलाओं द्वारा भजन कीर्तन, मंदिर का हाॅल पूरा भरा रहता था।
आरती के उपरांत सूची अनुसार प्रसाद वितरण में भक्त जनो का सहयोग बढ़चढ़ कर मिल रहा था।
महानवमी के दिन नवरात्रि पारण, हवन व भंडारा कार्यक्रम का आयोजन किया गया। भक्तजनों ने माता रानी का आर्शीवाद व प्रसाद ग्रहण किया। माँ भगवती से सबसे उत्तम स्वास्थ्य व सुख समृद्धि के लिये प्रार्थना की गयी। दशहरे के दिन रावण दहन का कार्यक्रम मंदिर के सामने मैदान में हुआ। मेघनाद, कुंभकरण व रावण के पुतले देखने के लिये लोग दिन छिपने से पहले ही एकात्रित हो गये।
अच्छी संख्या में लोग आतिश बाजी व रावण दहन के लिये एकात्रित हुये पूरे समय जय श्री राम जय श्री राम का उद्घोष होता रहा। सभी ने विजया दशमी पर्व की एक दूसरे को शुभकामनाये दी और सदभावना के साथ पर्व मनाया।
मंदिर सामिति भक्तजनों के सहयोग के लिये आभार प्रकट करती हैं।
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