रात के लगभग दो बजे कुछ आवाजों ने मेरी नींद तोड़ी ! खिड़की से बाहर झांका तो देखा कुछ लोग खड़े थे, जब तक मैं कुछ सोच पाती वो ‘‘कुछ’’ से ‘‘बहुत’’ हो गए। लोगों की भीड़ बड़ती जा रही थी। मनुष्य की प्रवती है की भीड़ का हिस्सा बनने को सदा तैयार रहता है तो मैं भी बन गयी भीड़ का हिस्सा और घर के बाहर निकल गयी।
वहाँ जा कर पाता चला की भूकंप के झटके महसूस किए जाने की वजह से लोग अपने-अपने घरों के बाहर निकल आए थे। खूब चर्चा होने लगी, किसी ने ग्लोबल वाॅर्मिंग का मुद्दा उठाया तो किसी ने पर्यावरण के बदलाव का, किसी ने इसे भगवान की चेतावनी कही तो किसी ने कल के ग्रहण का असर। फिर वही मनुष्य की प्रवतीकृ किसी और पर डाल कर दोष खुद को बड़ा समझने कीकृऔर भीड़ का हिस्सा तो हम है ही, तो हमने भी कर डाली कुछ टिप्पड़ियाँ!
थोड़ी देर में डर कम और पिकनिक का माहौल ज्यादा बन गया! किसी ने कह दी दो पंक्तियाँ गालिब साहिब की और शुरू हो गयी गीतों की अंताक्षरी। पता ही नहीं पड़ा कब चाय की प्याली मेरे हाथ में थी और फिर वोहि मनुष्य की प्रवती, भीड़ का हिस्सा तो हम है ही. चाय की चुस्कियाँ ले डाली ।
वैसे उस नींद से भरी आँखों ने घर से निकते हुए और कुछ उठाया हो ना हो मोबाइल फोन उठा लिया था, भूकंप की खबर जल्द आने लगी… मचपबमदजतम कहाँ था, भारत पर क्या प्रभाव, फोटो, कहर वेगेरा-वेगेरा सबके स्मार्ट फोन पर बजने लगा। सुबह भी होने को थी तो सब लोग अब घर को चले आए। भीड़ का हिस्सा तो हम है ही हम भी घर को आ गए।
और रह गयी भीड़ पीछे।
ध्यान एक़त्रित किया तो एहसास हुए मनुष्य की दूसरी खूबी काकृविचार उत्पन करने की खूबी।
कुछ देर सोचा तो खुद से प्रशन किया की हम किस ड़र से घरों के बाहर गए थे, यही की भूकम की झटके इमारत को शती पहुँचा सकते है या शायद इमारत को गिरा भी सकते है और तब यह एहसास हुआ की क्या इन घरों, इन महंगे महंगे अपार्टमेंट्स पर हमें भरोसा है?
बाहर से यह आलीशान और ख़ूबसूरत दिखने वाली इन इमारतों की नीव कैसी है? क्या यह डर भूकम्प का था या इमारत का भूकम्प के कारण गिरने का?
…और अगर गिरने का था तो क्या हमने कभी घर खघ्रीदने के समय इस बात पर गौर किया की बिल्डर ने इस इमारत की क्या क्या सर्टिफिकेशन करवाए है? क्या बिल्डर ने बीमा करवाया है? क्या समय समय पर इमारत का इन्स्पेक्शन होता है? क्या अथाॅरिटीज बिल्डिंग गिरने से पहले भी कभी मुआवना करती है? क्या बिल्डिंग के किसी काॅंट्रैक्ट पर यह लिखा है की किस डिग्री तक के भूकम्प के झटके तक यह सुरक्षित है या हम केवल यह देख कर तृप्त तो नहीं हो रहे की बाथरूम में जकूजी, पूरे घर में ए.सी. और किचन मोडुलर है!
भगवान के कहर हो या प्रकृति का बदलाव जिम्मेदार हम ही है, जिम्मेदार है हमारे कर्म! हमारी जिम्मेदारी बनती है पर्यावरण और समाजिक, और दोनो ही बातों पर गौर करनी की जरूरत है। भागने से पहले जागने की जरूरत है।
और हाँ अगली बार जब भागे तो मोबाइल के साथ इन्शुरन्स के कागज जरूर ले कर भागें क्यूँकि सोते तो हम रहेंगे ही चाहे कोई कितना भी जगा ले।
द्वारा रमिता तनेजा (8447161870)
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