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जहाँ चाह वहाँ राह
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जहाँ चाह वहाँ राह

राजनीति में आये दिन विपक्षी पार्टियां बेरोजगारी के मुद्दे को उछाल कर सत्ता रूढ़ सरकार को नीचा दिखाने की कोशिश करती हैं, किंतु रोजगार का अर्थ केवल पंखे के नीचे कुर्सी टेबल पर बैठ कर 10 से 5 बजे तक काम करके पैसा कमाना ही तो नहीं है। जिसे वास्तव में पैसा कमाने की चाह है और जो इसके लिए कठिन से कठिन चुनौती स्वीकार करने को तैयार हैं, उनके लिए अनेकों द्वार खुले हैं। संवाद के 2019 के सितंबर अंक में मैंने कुत्ता घुमाने वाले एक कर्मठ व्यक्ति का साक्षातकार लिया था।

जो कुत्तों को घुमाकर भी 50000 से भी अधिक रुपये कमा रहा है लेकिन इसके लिए उसे सुबह 6 बजे से 12 बजे तक और फिर 4 बजे शाम से रात 8 बजे तक अपना काम ईमानदारी से निभाना होता है।

इस संदर्भ में मैं उन सभी कर्मठ कर्मियों का उल्लेख करना चाहती हूँ जो स्वीगी, जोमाटो, मिल्क बास्केट, पीजा हट, ब्लिंक इट जैसे संस्थानों से जुड़े हैं और सुबह से शाम तक और कभी कभी देर रात तक अपनी स्कूटर या मोटर बाइक पर लोगों तक सामान पहुँचा कर 50000 से लेकर 60000 तक प्रति माह कमा रहे हैं।

एक दिन लिफ्ट में ब्लिन कीट का सामान ले जाने वाले एक युवक से मैंने उत्सुकता वश पूछ लिया कि आप एक दिन में कितने घरों में सामान पहुंचाते हैं तो उसका उत्तर था 35 से 40 घरों तक और त्योहारों में यह संख्या 50 तक पहुँच जाती है। उसने आगे बताया कि हम जितनी डिलीवरी करते हैं उसके हिसाब से हमें हर डिलीवरी पर 40 रुपये मिलते हैं। मैं आश्चर्य चकित थी यह सुन कर कि यह ‘‘डिलीवरी ब्वाय’’ भी 50000 से 60000 तक प्रति माह कमा रहा है और वह भी बिना किसी ऊँची डिग्री के। इसी क्रम में वे पोर्टर भी हैं जो एक घर से सामान दूसरे घर तक पहुंचा कर लगभग इतने ही रुपये कमा रहे हैं।

एक ओर जहाँ इनकी सेवाओं से हम लाभांवित होते हैं- हमारा बाजार जाने, कार का पेट्रोल जलाने, पार्किंग का खर्च और सबसे बढ़ कर समय का अपव्यय बचता है वहीं दूसरी ओर कितने लोगों की रोजी रोटी इसी से चलती है। आवश्यकता होती है केवल परिश्रम और ढृढ़ संकल्प की, फिर माता लक्ष्मी इन पर अपनी कृपा बरसाने में कभी कंजूसी नहीं करती हैं। तभी कहा है

‘‘उद्योगिनः पुरुष सिंहम उपेति लक्ष्मी’’

द्वारा शीला श्रीवास्तव (93509 83615)

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