Subscribe Now
Trending News

Sector 128 Noida

गुमनाम शायर

हाय वो जमाना
अगरचे इश्क में आफत है और बला भी है
निरा बुरा नहीं ये शग्ल कुछ भला भी है।

जिंदगी का एक बड़ा सच है कि ‘एब्सोल्यूट’ कुछ भी नहीं है। कोई भी बात पूरे तौर पर एकदम ठीक नहीं है और कोई भी बात पूरी खराब भी नहीं है। वास्तविक जिंदगी का मामला कुछ मिक्स्ड टाइप है। मतलब जिंदगी में पूरा ब्लैक कुछ नहीं है और पूरा व्हाईट भी कुछ नहीं है।

बहुत कुछ है जो ‘ग्रे एरिया’ में है। बड़ा शायर इसी ‘ग्रे’ को पकड़ लेता है। उसके यहां ‘एब्सोल्यूट’ कुछ नहीं होता। दिल्ली, आगरा, लखनऊ और लाहौर की गलियों में ऐसे गुमनाम शायर भरे पड़े थे पर आज उनके नाम कोई नहीं जानता।

मीर, जोक और गालिब जैसे शायर इसलिए याद रह गए क्योंकि उन पर किसी बादशाह या अमीर की सरपरस्ती थी। पर कई शायर हैं जिनके नाम-पते भी अब मुश्किल से मिलते हैं। पर उनका काम याद करने काबिल है।

इनामुल्लाह खां यकीन ऐसे ही शायर हैं। यकीन साहब दिल्ली के शायर थे। 1717 से 1755 के बीच इस दुनिया में रहे। मीर के समकालीन थे। कुछ और शेर सुनें यकीन साहब के –

नहीं मालूम अब की साल मय-ख़ाने पे क्या गुजरा
हमारे तौबा कर लेने से पैमाने पे क्या गुजरा
बरहमन सर को अपने पीटता था दैर के आगे। (दैर यानी मंदिर)
खुदा जाने तिरी सूरत से बुत-ख़ाने पे क्या गुजरा।

Home
Neighbourhood
Comments