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आई बरखा बहार
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आई बरखा बहार

चिलचिलाती धूप, लू के थपेड़ों और झुलसाती गर्मी से राहत दिलाने के लिये वर्षा ऋतु का आगमन इस बार समय से पहले ही हो गया है।

वैसे इस बार गर्मी की विभीषिका से सभी लोग मई के मध्य तक मुक्त रहे। जहाँ अप्रैल के अंत से ही ‘‘हाय गर्मी’’, बड़ी गर्मी का नारा सुनाई देने लगता था, वहीं इस बार सुहावने मौसम का आनंद सभी ने मई तक लिया, क्योंकि बीच बीच में हलकी फुलकी वर्षा और ग्रीष्म, आँख मिचैनी खेलते रहते थे। मई के अंतिम सप्ताह से जून के मध्य तक कभी कभी लू इस सुहाने मौसम का परदा हटा झांकने की कोशिश करती थी किंतु वर्षा की भीनी भीनी रिमझिम फुहारों से तृप्त हो वापस लौट जाती थी।

समय से पहले वर्षा होने का प्रभाव मनुष्यों और प्रकृति दोनों पर समान रूप से पड़ा। हर सोसाइटी के लाॅन मखमली हरी घास से सुशोभित हो गये। जहाँ पेड़ पौधे जून के अंत तक सूखे मुरझाये रहते थे, वहीं इस बार जून के प्रारंभ से ही प्रकृति के हरे आँचल में अनेकों रँग बिरंगे फूल अपना सौंदर्य और सुरभि बिखेरने लगे। यहाँ तक कि कैकटस में भी अत्यंत दुर्लभ फूल खिलने लगे। सुबह और शाम की सुहानी शीतल पवन से सभी जन- मन के मन- मयूर हर्षित और आनंदित हो गये और मैदानों में रह कर भी ‘‘हिल स्टेशन’’ की चुस्कियां लेने लगे। वर्षा प्रेमी मयूर भी वेलिंगटन की वादियों में अब ‘पीयू पीयूश्’का शोर मचाते हैं और आजकल अपने जोड़े के साथ प्रायः कार की छतों पर और कभी कभी तो प्रातः काल सड़कों पर टहलते दिखाई देते हैं। विगत 28 और 29 जून को हुई भारी वर्षा ने तापमान में भी गिरावट ला दी है। कुल मिलाकर सारे गुरुग्राम वासी अत्यंत प्रसन्न हैं।

हालांकि मौसम के इस अचानक परिवर्तन से कई नगरों को बाढ़ की विभीषिका से भी जूझना पड़ रहा है। पर्वतीय क्षेत्रों में पर्वत स्खलन के कारण वहाँ जाने वाले यात्रियों को भारी असुविधा का सामना करना पड़ रहा है। मध्य प्रदेश के साथ कई अन्य प्रदेश भी बाढ़ की यातना झेल रहे हैं, किंतु कहीं धूप कहीं छाया तो प्रकृति का नियम है और फिर यह तो हमारे प्रकृति से छेड़ छाड़ करने का ही परिणाम है। हमने जो बोया है उसी को तो काटेंगे।

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