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May the Month of Mental Awareness

माँ-बाप अपनी संतान को बांहों में ले खुशी से झूम उठतें हैं। लेकिन अचानक सामनें ये सच दैत्य की तरह आ खड़ा हो जाए कि उनकी संतान अन्य दूसरे बच्चों की तरह नहीं है, वह बाकी बच्चों से अलग विशिष्ट है, यह सत्य माता-पिता के लिए अवसाद की स्थिति है। इससे निकलना ही होता है उस संतान को सहेजनें के लिए।

हमारे ही प्रांगण की निवासी डाॅ. शोभा चतुर्वेदी अपना अनुभव सांझा कर रहीं हैं – माधव हमारे परिवार का पहला grandchild था। घर में खुशी का माहौलय अपने पहले जन्मदिन पर चलने भी लगा। जब दो वर्ष का था, मैंने नोटिस किया कि उसका eye contact नहीं हो रहा है। कितनी भी आवाज दो, वह हमारी तरफ नहीं देखता। पहले तो लगा कि ये हमारा भ्रम है फिर लगा कि कोई सुनने में दिक्कत तो नहीं है? लेकिन जांच में सब सही था। तीन वर्ष पर नर्सरी स्कूल भी जानें लगा, अपनी रोज होनें वाली प्रार्थना भी सुनानें लगा पर eye contact अभी भी नहीं करता। उससे कई बार कहनें पर respond करता; जो भी कहते, वह दुहराता। जब चार साल का हुआ, स्कूल में दाखिले के लिए इंटरव्यू हुए तब पता चला कि ये autistic है।

पूरे परिवार पर मानो दुख का पहाड़ ही टूट पड़ा। मां के मन में एक उम्मीद थी कि शायद जांच गलत हो क्योंकि माधव में सारे symptoms नहीं थे। मैं खुद भी डाक्टर हूं पर मुझे भी कुछ नहीं सूझ रहा था। धीरे-धीरे हम सबने स्वीकार कर लिया कि माधव एक different बच्चा है। इन बच्चों में कोई ना कोई ऐसी खूबी होती है जो बाकी बच्चों से उन्हें अलग करती है।

माधव आज तेरह साल का होनहार बच्चा है; sports में अच्छा करता है। मैराथन दौड़ता है। जैसे हर बच्चा एक दूसरे से अलग होता है, ये बच्चे भी अलग ही हैं ऐसा ही इन्हें मानें। जरूरत है इन्हें इनके हिसाब से वातावरण देनें की, इन्हें अलग करनें की नहीं।

by Meena Sharma (8076456439)

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