लेडीज क्लब 15-ए द्वारा 21 नवम्बर 2024 को आयोजित कार्यक्रम को शीर्षक ‘‘नारी’’ के रूप में मनाया गया। वक्ताओं ने नारी के जीवन से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर अपने विचार व्यक्त किए। समाज में उनके अतुलनीय योगदान व बलिदानों की चर्चा की गई, पूर्व इतिहास से लेकर आज के संदर्भ में कुछ विषयों को संबोधित किया गया। नारी को हर संस्कृति व समाज में सम्मानित किया जाता है। यहाँ तक कि यूनाइटेड नेशंस ने 8 मार्च को महिला दिवस के रूप में घोषित किया है। किंतु असलियत में यह स्तिथि कहाँ तक कारगर है। यह सोचने वाली बात है।
कार्यक्रम की शुरुआत श्री अनिल किशन जी ने महिलाओं के संदर्भ में सेल्फ डिफेंस का महत्व बताते हुए की। वह स्वयं सेल्फ डिफेंस एक्सपर्ट है और दिल्ली व एनसीआर के विद्यालयों और काॅलेजो में इसका प्रशिक्षण प्रदान कर रहे हैं।
‘‘एक महिला यदि प्रशिक्षित होती है, तो पुरा परिवार और समाज प्रशिक्षित होता है’’ महिलाओं को प्रशिक्षित किया जाता है जिससे वह अपने बल व बुद्धि के उचित प्रयोग से अपनी सुरक्षा करने में सक्षम हो सकती है। श्रीमति दया अग्रवाल ने महाकवि जयशंकर प्रसाद जी द्वारा रचित कविता ‘‘नारी तुम श्रद्धा हो’’ की कुछ पंक्तियों से आरम्भ कर, अन्य कुछ कवियों की लिखी हुई कविताओं के अंश सुनाए। जिनमें नारी को अलग-अलग रूपों में दर्शाया गया है।
श्रीमति प्रभा माथुर ने स्वरचित कविता आज की नारी के माध्यम से भारतीय नारी की सफलताओं और काबिलियत को सराहा। चाहे कोई भी क्षेत्रा हो- सैन्य बल, उच्च प्रशासनिक पद, अंतरिक्ष तक पहुँच या एवरेस्ट की चढ़ाई। भारतीय नारी ने हर असंभव कार्य को संभव कर दिखाया है।
श्रीमति शिवानी चतुर्वेदी ने आज की लुप्त हो रही लोक कथाओं में से एक गीत, कथा के रूप में प्रस्तुत किया। उन्होंने अपनी मधुर आवाज में, ब्रज भाषा की कुछ पंक्तियाँ भी गुनगुनाई जिसने श्रोताओं को भावविभोर कर दिया। किस प्रकार कथा की नायिका चंद्रावती ने अपने विवेक को असहाय परिस्थितियों में भी संभाले रखा, सुन कर, इसका प्रभाव श्रोताओं के दिल को छू गया।
श्रीमति उमा बागला ने लोक कथाओं के इस सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए कहा कि लोक कथाएं उन महान चरित्रों की याद दिलाती है, जिन का जिक्र इतिहास के पन्नों में भी न हो सका। सात भाइयों की बहन कथा का उन्होंने अत्यंत मार्मिक व भावपूर्ण वर्णन किया जिसने श्रोताओं को मन्त्रमुध्द कर दिया। शायद ही कोई उस सभा में उपस्थित होगा जिसके नेत्रा अश्रु से न भर आए हो।
श्रीमति रंजना बजाज ने हिन्दी उपन्यासकार डाॅ. मधु चतुर्वेदी द्वारा लिखित पौराणिक उपन्यास पंच कन्या पौराणिक कथा आख्यान का विश्लेषण करते हुए कथाओं के कुछ अंश पढ़कर सुनाये। अहिल्या, कुंती, द्रौपदी व मंदोदरी जैसे महान चरित्रों से जुड़ी जिज्ञासाओं का निवारण करते हुए, उपन्यास में उनकी जीवनी को सार्थक बनाया है।
श्रीमति स्मिता शाह ने अपने देश और विदेश में निवास के दौरान हुए अनुभवों के माध्यम से, बताया कि उन्होंने भारतीय महिलाओं की उपलब्धियों का स्तर, पश्चिमी देशों में रह रही महिलाओं से कहीं अधिक उच्च स्तर का पाया। उदाहरण के तौर पर हमारे देश में महिलाओं को चुनवी अधिकार अन्य कई देशों के मुकाबले, बहुत पहले से प्राप्त हैं। बहरहाल, कुछ ऐसे संस्मरण भी सामने आए जहाँ महिलाओं ने अपने अधिकारों का अनुचित उपयोग कर सामाजिक व पारिवारिक अशांति उत्पन्न की है। उचित मार्गदर्शन की आवश्यकता है।
कार्यक्रम के उपरान्त जायकेदार भोजन का सभी ने आनंद उठाया।

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