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हाय हाय गर्मी

कविवर बिहारी ने एक पंक्ति में गर्मी की विभीषिका को कितनी सुंदरता से चित्रित किया है ‘‘भरी दुपहरी जेठ की, छाहों चाहत छांह’’। अर्थात ज्येष्ठ मास की दोपहर को जब…

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