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कृत्रिम बरसात – सुखद व दुखद पहलू

सर्दियो के मीठेपन के साथ समस्या आ जाती है प्रदूषण की! एक सुबह, सैर से वापसी पर, सैकटर के कुछ निवासी प्रदूषण की शिकायत करने लगे आंखें जलती हुई प्रतीत होती, दूर दूर तक फैले प्रदूषण से कुछ दिखाई नहीं देता। तब हमारी बातों में कृत्रिम बरसात (artificial rain) का टोपिक भी निकल आया। पर इसके पहले प्रदूषण के कारण को भी हम अपनी बातों में लाए। प्रदूषण के कारणों में पराली जलाना, वाहनों का धूंआ, पटाखे का धूंआ, आदि है। पर कारण चाहे कुछ भी हों, ये बच्चों से लेकर बड़ों तक हर किसी के लिए हानिप्रद है इसको कम करने के लिए ही एक निवासी ने कृत्रिम बरसात के बारे में सुझाव दिया।
कृत्रिम बरसात एक प्रक्रिया होती है, जिससे प्रदूषण को कम करने व जहां बारिश न हो रही हो वहां इसको करा कर फसलों को सुरक्षित किया जाता है।

कृत्रिम वर्षा को कराने के लिए प्राकृतिक नमी वाले बादलों का होना आवश्यक है, इसे ही ‘कलाउडिंग सीड’ कहा जाता है। इसमें वैज्ञानिक एक तय ऊंचाई से विमान के द्वारा सिल्वर आयो डाइड, नमक व ड्राई आइस का छिड़काव करते हैं। यह काम बैलून, राकेट, या ड्रोन से भी किया जा सकता है।

हवाई जहाज से विधुतीकरण रेत या आइस गिराकर भी संभव है। यह वातावरण में फैली धुंध को छंटने में मदद दिलाता है। भारत में काफी समय से कृत्रिम वर्षा को प्रयोग में लाया जाता है। यह महाराष्ट्र व लखनऊ के कुछ हिस्सों में कराई गई है। पर इसे किसी बड़े भूभाग पर अभी तक नहीं कराया गया है।

जब जल वाष्प पानी की बूंदों के रूप में गिर कर धूल को शांत करें उसे ही कृत्रिम बरसात कहते हैं। जिन जगहों पर सूखा पड़ रहा हो वहां भी इसका प्रयोग किया जाता है। इजरायल व चीन जैसे देश इसे काफी प्रयोग करते हैं। दुबई में भीषण गर्मी पड़ती है, वहां हर साल इसका प्रयोग होता है। पर सवाल ये है कि क्या हम दिल्ली व निकटवर्ती इलाकों में प्रयोग कर बढ़ते प्रदूषण को नियंत्रित कर सकते हैं?

साथ ही दुखद पहलू ये है कि इसमें प्रयोग होने वाले कैमीकल भी नीचे आएंगे, जो मनुष्य व पेड़-पौधों के लिए हानिकारक सिद्ध होंगे। और क्या इससे ए.क्यू.आई. ठीक हो पाएगा? ए.क्यू.आई. वायु गुणवत्ता होता है। जिसमें मिले प्रदूषित कणों से वायु दूषित हो जाती है। जिसे नियंत्राण में लाना अनिवार्य हो जाता है।

हमें सब कुछ सोच-विचार कर इसे सराहा ही जाना चाहिए, व कृत्रिम बरसात को उपलब्ध कराना चाहिए। आखिर, अन्य देशों में यह तकनीक प्रयोग में लाकर इसके लाभ लिए ही जा रहे है।

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