पतझड़ के आगमन के साथ ही प्रारंभ होता है त्योहारों का सिलसिला। शरदीय नवरात्र, दशहरा, करवा चौथ, धनतेरस, दीपावली, भाई दूज कितने रंग हैं हम भारतीयों के जीवन में ! बाजार सज जाते हैं क्योंकि त्योहारों के इस सीजन के साथ-साथ शादियों का सीजन भी तो आता है ना !
आज कल चकाचैंध का जमाना है। ऑनलाइन शाॅपिंग का जमाना है। कौन बाहर जाये और घूम घूम कर चीजें लाये? ऑनलाइन ऑर्डर करो और होम डिलीवरी पाओ। हर चीज तो उपलब्ध है! कपड़ों हों या मेक अप का सामान, साज सज्जा की वस्तुएँ हों या रसोई घर के उपकरण, एक क्लिक पर उपलब्ध हैं।
पर क्या हम ने यह सोचा है कभी कि जो हमारे आस पास उपलब्ध है, उसकी जानकारी है हमें? वो सड़क के किनारे बैठे हुए मिट्टी के बर्तन बेचने वाला कुम्हार, वो मिट्टी के दीये और नजर बट्टू बेचने वाली दुबली सी महिला, वो खील और बताशे बेचकर कुछ पैसे कमाने का सपना देखने वाले बच्चे, वो ताजा फलों की रेहढ़ी लगानेवाला भैया, वो फुटपाथ पर रंगोली के रंग और स्टेंसिल बेचने वाली बच्ची, वो द्वार पर लगने वाला तोरण लेकर बैठी युवती, वो ताजा फूल की माला वाला माली भी अगर त्योहार माना सकें ता कितना अच्छा हो ना! पर यह तो तभी संभव है जब हम इनसे सामान खरीदें! वोकल फाॅर लोकल और मेक इन इंडिया पर यदि हम ध्यान दें तो एक तरफ जहां हम अपने देश की इन कलाओं को समाप्त होने से बचाएँगे वहीं दूसरी ओर हम इन मेहनती कारीगरों को प्रोत्साहित भी करेंगे। हम इनसे समान खरीद कर यह भी सुनिश्चित करेंगे कि यह मेहनतकश लोग हमारा घर सजाने के साथ-साथ अपने घर में भी दिया जलाकर रोशनी कर सकें। यह भी त्योहार माना सकें!
हमारे लोकल बाजार हमारे लिए सजते हैं और हमारी खरीदारी पर ही आश्रित हैं। ऑनलाइन देश विदेश के किसी भी कोने से खरीद फरोख्त हो सकती है पर छोटे दुकानदार तो आपका इंतजार करते हैं। इनसे सामान लेकर, पैकेजिंग को ईको फ्रेंडली रखते हुए, आप पर्यावरण का भी ध्यान रख सकते हैं। मेड इन चाइना को भूल कर, भारत में बनी वस्तुएँ अपनाइए। खुशियाँ बिखेरिये और सुनिश्चित कीजिए कि हमारे आस पास भी खुशियाँ हों और त्योहारों की रौनक हो। पटाखे, ध्वनि और वायु प्रदूषण का प्रमुख कारण हैं। इनका बहिष्कार कीजिए। दीपक रोशन कीजिए, रंगोली सजाइये, मित्रों और संबंधियों को मिलिए। त्योहारों का आनंद सबके साथ है।
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