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संवाद के दरबार के 160 रत्न
Sector 128 Noida

संवाद के दरबार के 160 रत्न

अकबर के दरबार के 23 रत्न थे, 9 नहीं। उसके लिए भी जरूरी था अपने दरबारियों को खुश रखना। इसलिए बढ़ानी पढ़ी गिनती। आश्चर्य नहीं कि आज के शहंशाह संवाद के दरबार के लेखक रत्नों की गिनती 160 थी जो महल के दीवान-ए-खास जैसे दिखते दिल्ली के हैबिटैट सेंटर में अपनी उपलब्धियों का वार्षिक जश्न मनाने 13 अप्रैल को पहुंचे थे।

पुरुष उतने ही बने-ठने थे जितनी महिलायें। उस हाल में तिरती वो उन्मादित हस्तियाँ जैसे अपनी खुशी संभाल नहीं पा रही थी। उल्लास और सफलता की उस मादक महक को किसी इतर की जरूरत नहीं थी।

यह आयोजन विनोद जी ने किया था। उन्हीं ने संवाद की बुनियाद भी रखी थी। उस कहावत को चरितार्थ करते हुए जिसमें कहा गया है कि an idea can change lives- लाखों की जिंदगी में एक सार्थक बदलाव तो आया ही है।

द्वारपाल नहीं थे पर द्वार के अंदर घुसते ही अपना तमाम चार्म बिखेरते चुस्त सूट में अवतरित हुए अंतरिक्ष। इस व्यक्ति को देख कर Alexander Pope की व्यंग कविता ‘रैप ऑफ द लाॅक’ की Belinda याद आती है।

पार्टी हो या संवाद की मासिक मीटिंग, भाई छाए रहते हैं। आपकी बात काटते हुए, आपके सुझाव रिजेक्ट या उनमें फेर-बदल करते हुए भी किसी को offend नहीं करते। Belinda की तरह।

कुछ ऐसे ही हुनर की मालकिन प्रिया हैं जो जब भी ख्यालों में उभरती हैं, परशुराम के रूप में आती हैं। काँधे पर कलम रूपी फरसा लटकाए, आपके लिखे के मर्दन के लिए तत्पर खड़ी दिखती हैं।

कुल मिला कर दोपहर का वो समां जिसमें कई स्वाद, कई व्यंजन खाने को भी मिले, खूब बीता। NCR से आए कई editor ने अपने विचार और उपलब्धियों का खांचा खींचा। संवाद के इन रत्नों के जमावड़े की चमक-धमक ने रौनक लगा दी। हर्षोल्लास रहा। धन्यवाद संवाद परिवार।

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