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किस्सागोईं

इतिहास भी माशूक जैसी तबीयत रखता है। कभी आपको उदास किए जाता है कभी खुश। कैसे प्यारे लोग, जो महफिलों की रौनक लगाते थे, एकांत में चुप से पड़े हुए हैं कोने में। दिल्ली इस कदर उदास होने के मौके देती है। और खुश होने के भी।

निजामुद्दीन में रहीमदास का मकबरा है। उत्तर भारत में जिन लोगों ने स्कूली शिक्षा हासिल की है, उन्होंने रहीमदास के दोहों को पढ़ा होगा। जी, वही रहीमदास, दफन हैं एक मकबरे के नीचे, निजामुद्दीन में।

अकबर के 23 रत्नों में से एक, रहीमदास के दोहे ‘जीवन प्रबंधन’ का कोर्स हैं। सही पढ़ा आपने। अकबर के 23 रत्न। इस बारे में बात करेंगे एक दिन क्लब 3 में बैठ कर। कोर्स भी पूरा करेंगे।राम की बात बहुत की है रहीमदास ने।

राम ना जाते हरिन संग, सीय न रावन साथ
जो रहीम भावी कतहुं, होत आपुने हाथ

रहीमदास कह रहे हैं कि राम हिरन यानी उस स्वर्ण मृग के संग नहीं जाते और सीता रावण के साथ ना जातीं, अगर भविष्य के मसले अपने हाथ में होते।

इतिहास के ऐसे और किस्से भी कहेंगे। जैसे एक Nagacin नाम का शहर था जिसे अकबर ने आगरा से 7 मील दूर उत्तर-पूर्व में बसाया था। अब उसका वजूद नहीं है। बस जिक्र ही किसी-किसी किताब में मिलता है।

ये उन दिनों की बात है जब हेमू को पानीपत की दूसरी लड़ाई में हरा कर वो नया-नया आगरा के किले में बसने आया था।जैसे सब करते हैं, अपने नए मकान को सुधारना। खटपट करते हैं मिस्त्री, मजदूर। हम सहन करते हैं, अमीर लोग होटल में शिफ्ट हो जाते हैं।

पर वो ठहरा बादशाह। उसने एक रिजाॅर्ट बना लिया-नगचिन-जहां वो ‘नाइट पोलो’ खेलता और अपनी हजारों रकासाओं में से कुछ चुनींदीयों के साथ मौज करता। किले की ठकठकाई से दूर।

बातें और भी हैं। किस्सागोई भी। मिलते हैं।

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