भारतीय संस्कृति में मूर्ति पूजा एक आध्यात्मिक प्रथा है। हमारी संस्कृति में मूर्ति पूजा का आदान-प्रदान धार्मिक ग्रंथो में मिलता है। मूर्ति पूजा के माध्यम से भक्त भगवान के साथ आत्मीयता महसूस करते हैं और उन्हें आध्यात्मिक सफलता की प्राप्ति का अनुभव होता है। जिस प्रकार वेदों में मूर्ति स्थापना एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है उसी प्रकार मूर्ति विसर्जन भी महत्वपूर्ण संस्कार माना गया है। मूर्ति विसर्जन में भक्तों द्वारा पूजा की गई मूर्ति को जल, नदी या सागर में विसर्जित किया जाता है। विसर्जन का मूल उद्देश्य भगवान को प्रकृति में समर्पित करना तथा मोक्ष की और जाने का प्रतीक माना गया है। बड़े शहरों में मूर्ति विसर्जन एक संवेदनशील मुद्दा बन गया है क्योंकि यहां पर जल स्रोतों की कमी के कारण मूर्तियों के विसर्जन में जटिल समस्या आती है। सरकार कई प्रकार के प्रावधान करती है लेकिन यह भी कुछ समय के लिए ही सीमित रहते हैं।
जैसे कि हम सब जानते हैं त्योहारों के महीनों में मूर्ति पूजन और अन्य पूजा सामग्री का उपयोग काफी बढ़ जाता है। लेकिन कुछ ही दिनों बाद हमें काफी मात्रा में भगवान की मूर्तियां, भगवान की तस्वीरें और अन्य पूजा सामग्री पीपल के पेड़ के नीचे, किसी दीवार या कोने में पड़ी हुए मिलती हैं ,जो एक आम दृश्य शहरों में दिखाई देता है। काफी बार लोगों को मिट्टी की मूर्तियों का उपयोग करने की भी सलाह दी जाती है लेकिन इससे भी समस्या का पूर्ण समाधान नहीं निकल पा रहा। इस गंभीर समस्या का समाधान के लिए नोएडा में पहली बार एक छळव् ने शुरुआत की है जिसमें हम सब पुरानी मूर्तियां, खंडित मूर्तियां, भगवान की तस्वीरें एवं पूजा सामग्री को बड़े मंदिरों जैसे इस्काॅन मंदिर सेक्टर 33, शनि धाम मंदिर सेक्टर 14 ए, शिव मंदिर सेक्टर 48 में संग्रहित कर सकते हैं। इस संस्था द्वारा मूर्तियों का विसर्जन सम्मान पूर्वक तथा अन्य पूजा सामग्री फूल पत्तों से खाद बनाने में उपयोग किया जाएगा।
तो क्यों ना हम सब मिलकर मूर्तियों को इधर-उधर रखने की रखने की बजाय एक निश्चित स्थान पर रखें और अपनी संस्कृति एवं पर्यावरण को संरक्षित करें।
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