कोंख में पल रही संतान मां-बाप की आंखें सतरंगी सपनों से सजा देती है। अब वही उनके जीवन का केन्द्र बन जाता है। जब अपनी संतान को अपनी बांहों में झुलातें हैं तो खुद भी खुशी से झूम उठतें हैं। लेकिन जब अचानक उनके सामनें ये सच दैत्य की तरह आ खड़ा हो जाए कि उनकी संतान अन्य दूसरे बच्चों की तरह नहीं है, उसका पालन-पोषण, उसकी शिक्षा कुछ भी सामान्य नही है। वह बाकी बच्चों से अलग है। वह बच्चा विशिष्ट है। यह सत्य माता-पिता के लिए एक अवसाद की स्थिति है, इससे निकलना ही होता है उस संतान को सहेजनें के लिए।
यह माह एसे ही लोगों की समस्याओं के प्रति चेतना जगाने के लिए मनाया जा रहा है। उन्हें जागरूक किया जा रहा है कि बच्चों या बड़ों में इस समस्या से कैसे पार पाए। बच्चों को किस तरह शिक्षित करें कि वो किसी हद तक अपना जीवन सुगम तरीके से जी सके।
ATS Village में Atheneum नें हमारे ही निवासी अर्चना अत्राी (0874) को वार्ता के लिए आमंत्रित किया। यह वार्ता काफी सफल रही, Autism के बारे में तथ्यों सहित जानकारी होने से बच्चों से कैसे व्यवहार किया जाए, इसमें आसानी होती है। अर्चना अत्राी के ही शब्दों में –
April is Autism Awareness and Acceptance Month, and to sensitise children and adult about neurodivergence, inclusion and how we can all be better allies/friends. Pooja Sharma, founder of The Sarvodya Collective and Inclusive Duniya, had been invited to Atheneum the ATS Village library. The audience engaged with her in a discussion on ‘ableism’ and the use of fact-based terminology with a preference for words like ‘disability‘ rather than ‘special needs’ or ‘differently-abled‘. It is unfriendly environment that leads to the disability experience and not just a physical condition. Attention was drawn to construction of ramps, lifts, etc. to improve accessibility for persons with limited mobility in social spaces like apartment complexes, schools, etc. An exhibition of posters made by children highlighting inclusion was also displayed.
जिन परिवारों अगर कोई संतान। Autistic है, उस परिवार नें किन चुनौतियों का सामना किया, उनकी मनोदशा क्या रही होगी? उन्होंने किस तरह अपनें आप को, इस समस्या से जूझनें के लिए तैयार किया होगा?
हमारे ही प्रांगण की निवासी डा. शोभा चतुर्वेदी आपके साथ अपना अनुभव सांझा कर रहीं हैं कृ माधव हमारे परिवार का पहला grandchild था, उसके आने की सभी को बहुत खुशी और उत्साह था। घर में खुशी का माहौल था, बड़ी बेटी की पहली संतान और छोटी बेटी के विवाह में कुछ दिनों का ही अन्तराल था। बच्चे का सब कुछ अच्छा चल रहा था ओर सारे milestones सही थे। अपने पहले जन्मदिन पर चलने भी लगा था। धीरे-धीरे सब अपनी जिंदगी में व्यस्त हो गए। जब माधव दो वर्ष का था, मैंने नोटिस किया कि उसका eye contact नहीं हो रहा है। कितनी भी आवाज दो, वह हमारी तरफ नहीं देखता था। पहले तो लगा कि ये हमारा भ्रम है फिर लगा कि कोई सुनने में दिक्कत तो नहीं है? लेकिन जांच में सब सही था। तीन वर्ष का होते होते नर्सरी स्कूल भी जानें लगा, अपनी रोज होनें वाली प्रार्थना भी सुनानें लगा पर eye contact अभी भी नहीं कर रहा था। उससे कई बार कहनें पर वह respond करता और जो भी कहते वह respond था। माधव जब चार साल का हुआ तब स्कूल में दाखिले के लिए इंटरव्यू हुए तब पता चला कि ये Autistic है। पूरे परिवार पर मानो दुख का पहाड़ ही टूट पड़ा। मां के मन में एक उम्मीद थी कि शायद जांच गलत हो क्योंकि माधव में सारे symptoms नहीं थे।
मैं खुद भी डाक्टर हूं पर मुझे भी कुछ नहीं सूझ रहा था। शारिरिक रूप से वह स्वस्थ था लेकिन, बातचीत करनें में समस्या थी। धीरे-धीरे हम सबने स्वीकार कर लिया कि माधव एक different बच्चा है। और हमें उसी के अनुसार आगे बढ़ना है। मेरी बेटी सोशल मीडिया पर अन्य लोगों से जुड़ी है और आपस में ये अपनें अनुभव भी सांझा करतें हैं। ये इन बच्चों के लिए काम करती है। इन बच्चों में कोई ना कोई ऐसी खूबी होती है जो बाकी बच्चों से उन्हें अलग करती है।
माधव आज तेरह साल का होनहार बच्चा; sports में अच्छा करता है। मैराथन दौड़ता है। जैसे हर बच्चा एक दूसरे से अलग होता है, ये बच्चे भी अलग ही हैं ऐसा ही इन्हें मानें। जरूरत है इन्हें इनके हिसाब से वातावरण देनें की, इन्हें अलग करनें की नहीं।
by Meena Sharma (1854, ATS Village; 8076456439)
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