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स्वागत शीत ऋतु
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स्वागत शीत ऋतु

भारत विविधताओ का देश है। केवल धर्म, संप्रदाय, वेशभूषा और रीति रिवाजों में ही नहीं, यहाँ की प्रकृति भी इंद्र धनुष के समान अनेकों रंगों से परिपूर्ण है। सभी 6 ऋतुएँ– ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमंत शिशिर,और वसंत- बारी बारी से आती जाती रहती हैं और यहाँ के निवासी कभी तो ग्रीष्म ताप से संतप्त होते हैं, कभी वर्षा के खुशनुमा मौसम का आनंद चाय पकोड़ों के साथ लेते हैं और कभी शीत ऋतु में ठिठुरते हुए आतुरता से सूर्य देव के दर्शन की प्रतीक्षा करते हैं।

शीत ऋतु नवंबर के मध्य से आकर अपना प्रभाव फरवरी के मध्य तक बनाये रहती है। ऐसे में जब खिली खिली धूप होती है तब अपनी आयाओं के साथ छोटे बच्चे, सीनियर सिटीजन और गृहिणियों को इसका आनंद लेने के लिए नीचे मैदान में देखा जाता है। किसी किसी घर में धूप आती ही नहीं अतः धूप के लिए नीचे आना अनिवार्य हो जाता है। नीचे आकर जहाँ धूप से उन्हें विटामिन डी का लाभ मिलता है, शरीर को गर्मी मिलती है वहीं बत रस से उन्हें एक नई ऊर्जा मिलती है। आप कहेंगे यह कौन सा रस है? साहित्य में 9 रस बताए गए हैं किंतु यह दसवां बत रस ऐसा रस है जो हमें अपने मित्रों से सबसे ज्यादा प्राप्त होता है और जो हमें तरोताजा कर देता है। धूप में महिलाओं और पुरुषों के छोटे छोटे समूह इसके साक्षी हैं और वहाँ इस रस का आनंद लेते उन्हें आसानी से देखा जा सकता है।

पुरुषों में राजनीति और देश विदेश की चर्चा आम है और महिलाओं में घरों में काम करने वाली बाई से लेकर पास पड़ोस के समाचार, तरह तरह के व्यंजनों की विधियाँ, स्वेटर मफलर के नमूने और पारिवारिक समस्याएं, सभी बिंदुओं पर चर्चा होती है। कभी कभी गरमागर्म चाय, मूंगफली और रेवड़ी इस बत रस को और भी चटपटा और भी लुभावना बना देती है।

इस तरह यह शीत ऋतु वह डोर है जो सभी को पास लाकर एक सूत्र में जोड़ती है।

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