D-1202, सनशाइन हेलियस, सेक्टर 78, नोएडा
दुनिया में छठ आस्था का महापर्व है और ये पर्व दुनिया के सबसे कठिन तपों में से एक है। संभवतरू इकलौता ऐसा पर्व है जिसमें उगते और डूबते हुए सूर्य की आराधना की जाती है। छठ कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष में होता है और दीवाली के छठे दिन यानी अमावस्या के 6 दिन बाद षष्ठी को मनाया जाता है। इसका एक नाम छठी मइया भी है। इस पूजा में पवित्रता का विशेष ध्यान रखा जाता हैए लहसुन और प्याज बिलकुल वर्जित होता है। इस व्रत को स्त्री और पुरुष दोनों ही करते हैं।
मैंने जब छठ पूजा करने को सोचा तो लगा कि मेरे जैसे लोगों के लिए असंभव है। 36 घंटे का बिना पानी के व्रत करना अत्यंत ही मुश्किल काम था। लेकिन अब मैं सोचती हूं कि दृढ़ इच्छाशक्ति से सबकुछ संभव है और कठिन से कठिन काम पूरा हो सकता है। छठ पर्व के दौरान मेरा हौसला बढ़ाने वाले सनशाइन हेलियस के लोगों के प्यार और आत्मीयता से भी अभिभूत हूं। ये सबका प्यार ही होता है जिसकी वजह से चार दिन का व्रत कैसे निकल जाता है पता ही नहीं चलता।
छठ पर्व की मान्यता लोग छठ पर्व सूर्यदेव से मंगल कामना और परिवार में अमन चैन के लिए मनाते हैंए कुछ लोग इस व्रत को संतान प्राप्ति के लिए भी रखते हैं। मान्यता है कि छठ पूजा करने से वरदान में संतान प्राप्ति होती है। छठ को लेकर कई मान्यताएं हैंए एक मान्यता है कि जब पांडव जुए में सबकुछ हार गए थे तो भगवान कृष्ण ने द्रौपदी को छठ करने की सलाह दी और इसकी महिमा से पांडवों को अपना खोया हुआ राजपाट वापस मिल गया था। एक पौराणिक मान्यता है कि राजा प्रियंवद निसंतान थे और उन्हें पुत्र प्राप्ति के लिए महर्षि कश्यप ने यज्ञ कराया। इस यज्ञ में जो खीर बनी राजा प्रियंवद की रानी ने खाया और उसके बाद जो बच्चा पैदा हुआ वो मृत था। इसके वियोग में राजा प्रियंवद ने अपने प्राण त्याग दिये। उसी समय भगवान ब्रहमा की मानस पुत्री देवसेना ने राजा प्रियवंद से कहा कि मैं सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न हुई हूंए तुम मेरी पूजा करो और लोगों में इसका प्रचार करो। उसके बाद राजा ने षष्ठी के दिन पूजा किया और उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई ।
महाभारत के मुताबिकए दानवीर कर्ण सूर्य के पुत्र थे और हमेशा सूर्य की उपासना करते थे और पुराणों के अनुसार सबसे पहले कर्ण ने ही सूर्य की पूजा की थी।
छठ पर्व कैसे मनाते हैं छठ पर्व चार दिनों में संपन्न होता है और ये चार दिनों का कठिन तप होता है। भाई दूज के अगले दिन से ही इसकी तैयारी शुरु हो जाती है। गेहूं धोकर सुखाना फिर उसे चक्की में खुद से पिसना या पिसवाना होता है। हर वक्त पवित्रता का सबसे अहम स्थान है। मान्यता है कि छठ पर्व के दौरान कोई भी गलती नहीं होनी चाहिए। लेकिन ये भी एक सच है कि छठ दुनिया के सबसे सरल पर्वों में से एक है जहां ना तो कोई मंत्र हैए ना ही किसी से पूजा करवाने की ज़रुरत होती हैए ना ही किसी को प्रसन्न करने की ज़रुरत होती है। यहां सिर्फ एक व्रती और उसका भगवान होता है। सिर्फ भगवान की आराधना होती हैए आप सीधे भगवान से मन्नत मांगते हैं और आपकी भक्ति सुनी जाती है। दुनिया में इसके लाखों उदाहरण होंगे। छठ पूजा के चार दिनों में पहला दिन होता है नहाय खाय।
नहाय खाय छठ पूजा के पहले दिन को नहाय खाय कहा जाता है। इस दिन व्रती पूरे घर को साफ और पवित्र करके घी मेंबनी हुई कद्दू की सब्जीए अरवा चावलए चने की दाल प्रसाद के रुप में खाते हैं और इस दिन सिर्फ यही उनका आहार होता है। इस दिन सिर्फ सेंधा नमक का इस्तेमाल होता है।
खरना दूसरे दिन के व्रत को खरना कहते हैं। इस दिन व्रत करने वाले पूरे दिन उपवास रखते हैं और इस दौरान पूरे दिन अन्न और जल दोनों का त्याग होता है। सूर्यास्त के बाद गुड़ए दूध और चावल से बनी खीर और रोटी बनती हैं और इसके बाद छठी माता और भगवान सूर्य की आराधना करते हैं। पूजा के बाद इसे ही प्रसाद के रुप में ग्रहण करते हैं। इसके बाद शुरु होता है 36 घंटे की बिना अन्न जल की उपासना।
पहला अर्घ्य तीसरे दिन भगवान सूर्य को अर्घ्य देते हैं। खरना में प्रसाद खाने और पानी पीने के बाद अगले दिन ना तो अन्न ग्रहण करते हैं और ना ही जल। पूरे दिन उपवास के बाद शाम में डूबते हुए भगवान सूर्य को अर्घ्य देते हैं और सबके कुशल मंगल की कामना करते हैं। अर्घ्य देने से पहले लोग घंटों पानी में खड़े होकर भगवान सूर्य की आराधना करते हैं। अर्घ्य देने के बाद कई लोग पूरी रात घाट पर ही बिताते हैं औऱ सूर्योदय का इंतज़ार करते हैं।
दूसरा अर्घ्य चौथे दिन यानी अगली सुबह सूर्योदय के साथ व्रती भगवान सूर्य को अर्घ्य देते हैं और व्रत समाप्त करते हैं। 36 घंटे बगैर अन्न और जल के इस व्रत के बात व्रती गुड़ घी और आटे से बना ठेकुआ खाते हैं। इसके साथ ही छठ पर्व समाप्त होता है।
छठ का प्रसाद छठ के प्रसाद में सबसे अहम ठेकुआ होता है और इसको बनाना भी एक साधना के जैसी होती है। गुड़ए घीएआटा से बनने वाला ये प्रसाद स्वाद में अद्भुत होता है। व्रती के साथ इसे बनाने वाले लोग भी एक तरह से व्रत ही करते हैं। जब तक से ठेकुआ बनते रहता हैए बनाने वाले खाली पेट और बगैर पानी पिये ही रहते हैं और शायद इस श्रद्धा की वजह से इसका स्वाद भी बिलकुल अलग होता है। इसके अलावा केला के साथ कई प्रकार के और फलए नारियलए कसार;चावल के आटे से बना हुआद्ध भगवान के चढ़ाया जाता है।
छठ एक ऐसा पर्व है जिसमें कोई किसी का निमंत्रण नहीं देता बल्कि लोग खुद ही उस घर में जाते हैं जहां छठ व्रत हो रहा होता है। आखिरी दिन छठ के घाट पर आप बिना किसी परिचय के अर्घ्य दे सकते हैं और मांगकर प्रसाद खा सकते हैं। इसीलिए कहा जाता है कि छठी माता और भगवान सूर्य सबको बराबर द छठ पूजा में फिर मुलाकात होगी।
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