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हाय हाय गर्मी
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हाय हाय गर्मी

कविवर बिहारी ने एक पंक्ति में गर्मी की विभीषिका को कितनी सुंदरता से चित्रित किया है

‘‘भरी दुपहरी जेठ की, छाहों चाहत छांह’’।

अर्थात ज्येष्ठ मास की दोपहर को जब सूरज आकाश में ऊपर होता है तब हमारी छाया भी छाया की तलाश में छिप जाती है। वास्तव में ग्रीष्म ऋतु, जो इस बार अपनी प्रचंड शक्ति के साथ, पशु, पक्षी, वनस्पति जगत और मनुष्य सभी को मई और जून माह में आतंकित करती रही, अत्यंत कष्टदाई सिद्ध हुई। किंतु गर्मी से संसार की गतिविधि तो रुकती नहीं। निम्न वर्ग, निम्न मध्यम वर्ग को तो अपनी रोजी रोटी कमाने के लिए ग्रीष्म की विभीषिका को झेलते हुए धूप में निकलना ही पड़ता है। उन्हें गर्मी की मार से थोड़ी राहत देने के लिए अनेकों सहृदय महिलाओं ने शीतल पेय वितरण का प्रयास किया।

वेलिंग्टन के कल्याणी ग्रुप ने भी इसमें अपनी भागीदारी निभाते हुए समय समय पर शीतल पेय वितरण कार्यक्रम मई और जून के महीने में रखा जो 10 मई अक्षय तृतीया से प्रारंभ होकर 22 जून, ज्येष्ठ पूर्णिमा तक चलता रहा, जिसमें राहगीरों, श्रमिकों, गार्डों, ड्राइवरों, सेवक सेविकाओं और कार सफाई कर्मियों को कभी रूह अफजा, कभी छाछ, कभी नींबू पानी और कभी मीठी लस्सी विभिन्न खाद्य पदार्थों के साथ वितरित की गई। 18 जून को निर्जला एकादशी के दिन मीठी लस्सी खरबूजों के साथ बांटी गई। यह कार्यक्रम 11 बजे से लेकर 1 बजे दोपहर तक चलता था। चूंकि कार सफाई कर्मी उस समय जा चुके होते हैं अतः उन्हें सुबह 7 बजे से 8.30 तक यह वितरण किया गया।

वेलिंगटन की महिलाओं ने अपनी उदारता से इस आयोजन को सफल बनाने में सहयोग दिया। सभी को हार्दिक धन्यवाद।

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