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हरिनाम की गुंज
Sector 93 Noida

हरिनाम की गुंज

सिल्वर सिटि के ब्रैक्विट हाॅल में 24 सितंबर से 30 सितंबर तक श्रीमद् भाग्वत कथा का आयोजन किया गया। हमारी ही सोसाईटी के निवासी सुनील शर्मा और वृन्दा शर्मा, उनकी पत्नी, ने यह भक्ति भाव पूर्ण कार्यक्रम का आयोजन किया। संगीत सिंह, शिल्पि टण्डन, मोनिका मक्कर, वन्दना चैहान मधुरिका सटीन और उनके परिवारों ने भी उन्हें पूरा सहयोग दिया।

यह कार्यक्रम ‘श्री भक्ति वेदान्त सिध्दान्ती’ महाराज जी के आनुगत्य में संभव हो पाया। उन्होंने न केवल सबको भक्ति रस में डुबो दिया अपितु बहुत से लोगोें को हरिनाम की शिक्षा-दीक्षा भी दी। श्रील महाराज जी गौडिय सम्प्रदाय से सम्बन्ध रखते हैं और इनका मूल मठ श्री वृन्दावन धाम में हैं।

आज के युग में जब बहुत से भ्रमित पथ देखे जाते हैं, शास्त्रों के अनुसार केवल चार ही प्रामणिक वैष्णव सम्प्रदाय हैं और गौडिय सम्प्रदाय उन्ही में से एक सम्प्रदाय ‘ब्रह्म मध्व गौड़िय सम्प्रदाय’ है जो भक्ति का प्रचार कर रहा है।
श्री मद् भागवत का पाठ प्रायः सात दिन का होता है। यह एक ऐसा फल है जिसमेे कोई छिल्का, न कोई गुठली है। इसे महापुराण भी कहा जाता। जिस तरह एक पेड की पहचान उसके फल से होती है, उसी तरह श्री मद् भागवत भी सभी वेदों, पुराणों, और उपनिषदों का सार है।

यह ज्ञान श्री कृष्ण ने ब्रह्मा जी, ने श्री ब्रहमाजी, श्री नारद जी ने श्री वेद व्यास जी और वेद व्यास जी ने शुकदेव गोस्वामी को दिया था। फिर शुकदेव जी परीक्षित जी को इसका पाठ सुनाया। और इसी परम्परा में आगे यह ज्ञान हमारे गुरूवर्गांे से श्री भक्ति वेदान्त सिध्दान्ती महाराज जी ने यहाँ सिल्वर सिटी में बाँटकर हमें पवित्रा किया।
अतः गोडिय सम्प्रदाय की परम्परा का यश बढाते हुए महाराज जी ने अपने गुरू ‘श्री भक्ति वेदान्त नारायण गोस्वामी’ महाराज जी की भी कीर्ती बढाई।

श्री मद् भागवत के प्रथम दिवस पर कलश यात्रा निकाली गई, जिसमें आस-पास की सोसाईटियों की महिलाऐं भी सम्मिलित हुई। श्रील महाराज जी ने सात दिन तक हमेें कृष्ण कथा रूपी अमृत का पान कराया। उनकी मधुर बोली, और भक्ति के सौपान ने बूढों, युवको, बच्चों का भी मन मोहलिया। कीर्तन की मधुर तान ने मन को हर्षित कर दिया। इसका पूरा प्रसारण ‘फेसबुक’, ‘यू-टयूब’ पर भी किया गया। इस पर सातों दिन रात के प्रसाद की व्यवस्था पूरी सोसाइटी के लिए की गई थी।

अंतिम दिवस पर भी श्रील महाराज जी अपनी भक्ति की ऊर्जा सब तरफ फैलाते रहै। उन्होेंने नगर संकीर्तन निकाला जिससे सब सिलवर सिटी के निवासियों पेंडो, पशुओं, पक्षियों, सबके कानों में हरिनाम गूंज उठा।

कलियुग केवल नाम आधारित हैं। इसलिए कहा जाता है हरिनाम हरिनाम हरिनाम एवं केवनम्, कलो नास्तैव नास्तैव नास्तैव गतिरन्यथा अर्थात्ः ‘‘कलियुग में हरिनाम के बिना कोई गति नही, महाराज जी का आना यहाँ सार्थक हुआ।

ऐसे आयोजन हमारी संस्कृति को लुप्त होने से बचाऐंगे। नई पीढी के अन्दर आकरोष, डिप्रैश्न, सुसाईडल टेन्डेन्सी देखी जा रही है। परन्तु ऐसे कार्यक्रम उन्हें सद्विचार देते हुए, माता-पिता की सेवा और अन्त में भग्वत की सेवा करने में और भग्वत पे्रम पाने में सक्षम कराएगी।

हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।

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