सभी को सादर जय जिनेन्द्र! सेक्टर 93बी में शांतिनाथ दिगंबर जैन जिन चैत्यालय में हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी दस लक्षण कार्यक्रम बड़े ही धूमधाम से मनाए गए। सुबह शांति धारा अभिषेक एवं सामूहिक पूजन एवं शाम के समय सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किये गए, जो पूरे 10 दिन तक चले जिसमें सभी ने बहुत आनंद लिया।
पहले दिन, 19 अक्टूबर, को नृत्य की प्रस्तुति की गई जिसमें जैन महिलाओं ने भजन पर नृत्य प्रस्तुति किए। अगले दिन 20 तारीख को ‘‘कौन बनेगा ज्ञानवान’’ खिलाया गया, जिसमें बच्चों से एवं बड़ों से से धर्म-सम्बंधित प्रश्न पूछे गये एवं जवाब देने पर उन्हें आकर्षक पुरस्कार भी प्रस्तुत किए गए जिसमें सभी के ज्ञान में भी वृद्धि हुई। 21 अक्टूबर को “तीर्थ वन्दना” एक खेल खिलाया गया जिसमें हमारे जैनियों के जितने भी तीर्थस्थान है उनको बोर्ड के द्वारा प्रदर्शित किया गया एवं जिस तरीके से म्यूजिकल चेयर होता इसी प्रकार इस खेल से हमें अलग-अलग तीर्थ स्थानों के बारे में पता लगा और जो टीम जीती उनको पुरस्कार भी दिया गया।
22 तारीख को बच्चों द्वारा फैन्सी ड्रेस रखा गया। बच्चे जैन धर्म से संबंधित धार्मिक पात्रा बन कर आए और बच्चों ने काफी धर्म लाभ भी लिया और लोगों को भी तीर्थंकरों की छोटी-छोटी कहानी प्रस्तुत की। 23 तारीख को संजीव जी द्वारा भजन संध्या रखी गयी। उन्होने स्वाध्याय के साथ-साथ बहुत अच्छे भजन भी करवाए एवं महिलाओं ने नृत्य भी किया।
24 तारीख को धार्मिक तम्बोला खिलाया गया जिसमें हमें धार्मिक ज्ञान प्राप्त हुआ। 25 तारीख को हमने “स्याद्वाद युवा क्लब” द्वारा एक मिनट की प्रतियोगिता का आनंद लिया जिसमें “स्याद्वाद युवा क्लब” के लोगों ने 1 मिनट के कुछ धर्म से संबंधित खेल कराए एवं आकर्षक इनाम भी दिए एवं धर्म ज्ञान भी दिया। 26 तारीख को महिलाओं द्वारा “डम शराज” के तरीके से धर्म से संबंधित खेल खिलाए गए जिसमें पिक्चर के नाम न होकर भजन, आरती, पूजा इन सब को दर्शाया गया एवं उन्हें पहचानने पर जो टीम जीती उसको आकर्षक इनाम भी प्रदान किए गए।
27 तारीख को महिलाओं द्वारा नाटिका की प्रस्तुति की गई जिसमें उन्होंने यह भी संदेश दिया कि हमें धर्म पर आस्था रखनी चाहिए। धर्म से हमारे बड़े-बड़े काम भी सिद्ध हो जाते हैं और दिखावा छोड़ें, अपनी अकल लगाएय हमें सादा जीवन और उच्च विचार रखना चाहिए। जिस तरीके से ज्यादा घरों में दान का बहुत महत्व है उसी प्रकार हमें अपनी जरूरत के हिसाब से अपनी स्थिति के हिसाब से समय समय पर दान करते रहना चाहिए।
अंतिम दिन 28 अक्टूबर, अनंत चतुर्दशी, हर्ष उल्लास के साथ मनाया। सबसे पहले हमने सुबह वासुपूज्य भगवान का मोक्ष कल्याणक मनाया एवं व्रत भी रखा और शाम को कुछ खेल रहा जिसमें धर्म की भी प्राप्ति हुई आखरी दिन। अंत में अपनी वाणी को विराम देते हुए मैं बस यही कहना चाहती हूँ कि जिस तरह हम हर साल दशलक्षण पर्व मनाते हैं धर्म ज्ञान प्राप्त करते हैं एवं जनों के संदेश को अपने जीवन में अपनाने की कोशिश करते हैं, उसी प्रकार हर वर्ष हमें अधिक से अधिक धर्म लाभ लेना चाहिए एवं जैन धर्म के शिक्षाओं पर अमल करना चाहिए।
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