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Sushant Lok 1

सुशांत लोक का जल प्रवाह – वाह, वाह…!!

मित्रों आज बताता हूँ, जल प्रवाह का सच्चा हाल।
सुशांत लोक में रहते बीते, पांच महीने, पच्चीस साल।
शुरू शुरू की बात है, जल प्रवाह था मस्त,
ऊपर टंकी तक चढ़ता था, जोर से पूरे, जबरदस्त!
सब का एक निवास था फ्लोर आदि नहीं होते थे,
खाली सड़कें, खुला मैदान, एकांत लोक में रहते थे।
पांच वर्ष फिर बीत गए, हुई आबादी दुगनी,
कालोनी भरने लगी, बोल उठा फिर पानीः
‘‘और नहीं चढ़ सकता मैं, अब रहा नहीं वह जोर,
नीचे टंकी तक ही आऊंगा, ले जाना तुम छत की ओर’’
(अब हम भी क्या करते, जल देवता की तो सुननी ही थी)
बूस्टर झट लगवाया हमने जल को ऊपर चढ़वाने,
‘‘चलो, काम हो जाता है’’, दिल को लगे हम समझाने।
इसी तरह चलता रहा बीते वर्ष अनेक…
इक दिन आया जब पानी ने घुटने और शीश दिए जो टेक
‘‘वृद्ध हो गया बिलकुल मैं अब, सप्लाई पाइप तक आता हूँ।
इक मीटर भी चढ़ ना पाता गिरता, उठता, लंगड़ाता हूँ’’
‘‘पम्प एक लगवा लो और विलम्ब ना तनिक कराए,
ढूंढो,अनुसंधान करो या खोज लो कोई उपाए’’
(चलो, भाई, ऐसी हालत हमें हथियार फिर डालने पड़े)
एक नहीं, दो मोटर हैं अब, आगे पीछे चलती हैं,
इक नीचे का कुंड भरे, और दूजी छत को चढ़ती है।
कैसा है यह जीवन भाई, हो गए इतने वर्ष,
और हमें कुछ काम नहीं, बस दौड़-धूप, संघर्ष..?
सुबह सात और शाम पांच पर सब सतर्क हो जाते हैं,
काम काज सब छोड़ छाड़ कर सावधान हो जाते हैं।
फिर भी जनता मुश्किल में हैं आस-पड़ोस, चाचा, ताया।
सुनने को अक्सर आता है ‘‘आज इक बूँद नहीं आया’’
आगे क्या क्या होवेगा, देखेंगे क्या अपने बच्चे..?
रक्षा जल की सब करो, मन से अपने सच्चे।

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