सखी सहेली गोष्ठी की हमेशा ही प्रतिक्षा रहती है। एक अर्थपूर्ण गोष्ठी की प्रतिक्षा किसे नहीं रहेगी? और उस पर, जब इतनें प्रतिष्ठित अतिथियों से बातचीत का अवसर मिलता रहता हो।
ईस बार हमारी गोष्ठी २४ अप्रैल को दिन में १२ बजे थी। निवास था हमारी सदस्या प्रतिभा जैन का, उन्हीं के घर सबको एकत्रित होना था। आज हमारी विशेष अतिथि थीं प्रसिद्ध लेखिका एवं गांधी म्यूजियम की निदेशिका श्रीमति वर्षा दास। कई भाषाओं में उन्होने लिखा हैय अंग्रेजी, हिंदी, उड़िया, मराठी और बंगला सभी भाषाओं पर समान निपुणता है।
वर्षा दास स्वतंत्राता सेनानियों के परिवार से हैं। जैसा कि सभी जानतें हैं कि देश की स्वतंत्राता के प्रति जागरूक भारतीयों ने किस प्रकार संघर्ष करके देश को आजा़दी दिलवाई, जेल में भी कठिन जीवन गुजारा। वर्षा दास के माता-पिता नें भी इस लड़ाई में गांधी जी का साथ दिया। और अंततः आजादी मिली। गांधी के बारे में बहुत लिखा गया पर उनके कदम से कदम मिला कर चलनें वाली कस्तूरबा जी के बारे में कम ही लोग जानते होंगे। वर्षा दास की माताजी कारागार में कस्तूरबा की सहायिका के तौर पर कारावास काट रहीं थीं, उन्होंनें उनको बहुत क़रीब से जाना। बाद में उनके बारे में किताबें भी लिखीं। वर्षा जी नें उन्हीं पुस्तकों के हवाले से कई संस्मरण सुनाए। सच में हमनें इतना कहाँ जाना था कस्तूरबा को? उनकी छवि एक आज्ञाकारी पत्नि के रूप में ही हमारे मानस में है। लेकिन उनके व्यक्तित्व को पूरी तौर पर जाना कि वह एक द्ढ़ महिला थीं और बापू की कई व्यवस्थाओं को पूरी तरह चलातीं थीं एक समझदार बुद्धिमान व्यक्तित्व था इनका। कई बार बापू की अच्छी सलाहकार भी थीं। कहा जाए तो नारी सशक्तिकरण का जीता जागता उदाहरण।
वर्षा जी से बातचीत बहुत रोचक थी; कोई बहुत गम्भीर क्षण नहीं आए, ऐस ही लगा कि बहुत अपनत्व है। खुल कर हम लोगों ने भी अपनीं बात कही और सवाल पूछे। यहाँ पर यह भी बता दूँ कि उनकी पुत्राी नंदिता दास कई फिल्मों में काम कर चुकीं हैं और उनकी पहचान एक गम्भीर मंजी हुई अभिनेत्राी के तौर पर है। गांधी साहित्य पर काम किया है इन्होंनें।
अब विनम्र और मृदुभाषी वर्षा जी से विदा लेने का समय आ गया था। अब भोजन मेज पर लग चुका था। प्रतिभा जी नें बहुत ही सुस्वादु भोजन परोसा। हर तरफ से तृप्त होकर, सबनें विदा ली।
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