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‘वृद्धावस्था में एकाकी पन’ एक ज्वलंत समस्या
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‘वृद्धावस्था में एकाकी पन’ एक ज्वलंत समस्या

सखी सहेली ग्रुप की मासिक गोष्ठी इस माह 25 नवम्बर को सुनिश्चित हुई थी। यह साहित्य में रूचि रखनें वाली ऐटीएस विलेज की महिलाओं द्वारा निर्मित एक छोटा ग्रुप है। इसमें किसी भी विषय पर सदस्य अपनें विचार रखतें हैं और यही चर्चा का विषय होता है। इस बार हमारी सद्स्य विनिता जैन ने इस गोष्ठी का आयोजन किया था। उन्होंनें अतिथि के तौर पर पद्मश्री झुनझुनवाला को आमंत्रित किया।

शीला झुनझुनवाला वरिष्ठ साहित्यकार, सम्पादक एवं शोधकर्ता हैं। आप ‘टाईम्स ऑफ इंडिया’ प्रकाशन समूह से जुड़ी रहीं, महिलाओं के लिए दिल्ली से प्रकाशित ‘अंगजा’ पत्रिका की सम्पादक रहीं। ‘साप्ताहिक हिन्दुस्तान’ की भी सम्पादक रहीं। इसके अतिरिक्त कई नाटक एवं फिल्मों की पटकथा भी लिखी है। हम सभी सदस्य उनसे मिलनें के लिए उत्साहित थे।

आज हम लोग उनके नवप्रकाशित उपन्यास ‘पतझड़ में बसंत’ पर उनसे बातचीत करनें वाले थे। इस उपन्यास में उन्होंनें एक वृद्ध पिता की स्थिति का चित्राण किया है, जिसमें वह अपनें पुत्रा के साथ रहते तो हैं परंतु उनके जीवन में नितांत अकेलापन है। उस अकेलेपन को किससे बांटे यह समस्या है। हालांकि इसमें दोषी कोई नहीं है, परिस्थितियां ही ऐसी हैं। संयुक्त परिवार का विघटन, तेजी से बदलतीं सामाजिक स्थितियां, वृद्ध जन इस स्थिति में असहज हैं।

नई पीढ़ी के सामनें भी अनेक चुनौतियां हैं, जिसमें वह जूझतें रहतें हैं। समयाभाव है, जीवन मूल्य, मानवीय मूल्य सब कुछ तेजी से भागते समय में कहीं पीछे छूटते जा रहे हैं। और यह वृद्ध जनों के लिए त्रासदी है। अपनी ही संतान के पास उनके लिए समय नहीं, यह स्वीकारना बहुत कठिन है। उनके अनुभव, उनका ज्ञान सब कुछ वर्तमान समय में व्यर्थ है। किसी काम का नहीं, यह स्वीकारना आसान नहीं। अब इसका समाधान क्या है?
समाधान तो यही है कि, किसी और से अपेक्षा ना करके हमें ही स्वंय इस स्थिति से उबरनें के लिए प्रयत्न करना होगा। अपनीं क्षमताओं को पहचानना होगा और उसके अनुरूप अपनें आपको ढालना होगा। किसी पर पूरी तरह निर्भर होना ही दुखदाई है। जीवन के प्रति सकारात्मक रहें। सकारात्मक ऊर्जा रखें, मित्रा बनाएं। कुछ मन-पसंद समूहों से जुड़ें। जीवन को सहज ढंग से जिएं। पठन-पाठन भी अच्छा शौक है।

हमारे अन्य अतिथिओं नें अपनें विचार रखें और अपनें अनुभव भी। चर्चा बहुत रोचक और सार्थक रही। श्रीमती झुनझुनवाला नें बहुत सहज ढंग से इस समस्या से बाहर निकलनें के लिए सुझाव दिए। अब समय आ गया था विदा का। इतनी विद्वान, अनेकों पुरस्कारों से अलंकृत शीला जी, प्रभावशाली व्यक्तित्व की धनी हैं।और हम सभी विनीता जैन के आभारी हैं, जिनके प्रयासों के कारण यह गोष्ठी बहुत सार्थक और स्मरणीय रही।

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