वसंत ने चारों ओर खिलते फूलो से दस्तक दी, पुरानी पत्तियाँ बुढ़िया गयी और पेड़ो का साथ छोड़ गई। नए कोपलें किसी नवजात शिशु की भांति किलकारियाँ भर रही हैंय ऐसे में माता रानी का आगमन (नवरात्रि) बिल्कुल ऐसे है जैसे सोने पे सुहागा।
ये बयार लाती है। अपने साथ अशेष सकारात्मकता। इस ही के साथ ‘विंडसर ग्रीन्स’ सोसाइटी में गूँजती है ढोलक की थाप, मंजीरे व झाँझर की झंकार। अपनी बेहद व्यस्तता से समय निकाल इस सोसाइटी में माँ अम्बे की बेटियाँ अपनी माँ के कीर्तन रूपी गुणगान के लिए संध्या समय एकत्रित होने के लिए लालायित रहती हैं।
कीर्तन संध्या की प्रथा का प्रारंभ लगभग 16 वर्ष पूर्व विंडसर सोसाइटी की संभ्रांत महिला, पारुल सचदेवा जी ने किया। तब से अनवरत यह कीर्तन-भजन चिरंतन है। पारुल जी के ‘माँ के जयकारे’ का शब्द घोष आत्मा व शरीर के रोम-रोम को झंकृत कर देता है। नवरात्रि के तय रंगों के अनुसार वेशभूषा धारण की हुई सभी भक्त स्त्रिायाँ खूब जोर-शोर से ‘महिषासुर मर्दिनी स्तोत्रा’ द्वारा कीर्तन संध्या का आरंभ करती हैं। माँ अम्बे की आरती व प्रसाद (फलाहारी) वितरण से इस कीर्तन की समाप्ति होती है।
इस बार भी 22 मार्च से प्रारंभ चैत्रा नवरात्रा के नौ दिनों को अत्यंत धूमधाम से मनाया गया। असीम आस्था के प्रतीक नवरात्रा के पर्व को विंडसर ग्रीन्स स्त्रियाँ अलौकिक सकरात्मकता से भर देती हैं। अच्छी बात यह है कि इस भक्तिमय आनंद में अन्य सोसाइटी की महिलाओं का भी हृदय से स्वागत होता है, तो अगले वर्ष आप सब अवश्य आइए।
द्वारा शिवानी सोनी (विंडसर ग्रीन्सय 9871577291)
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