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रिश्तों का चक्रविहु

रंग बिरंगे और खट्टे मीठे रिश्तों का गजब चक्रविहु है जीवन, अभिमन्यु हम सभी हैं अर्जुन बस थोड़े से ।
हमारी गम और खुशी की भावनाएं ऊंचाइयों को छूने का संघर्ष कभी रिश्तों का तोहफा कभी फरमाइश का हिस्सा य ये ना हों तो जीवन शून्य है।

रिश्तों की पहचान कभी खून कभी नजदीकीयां कभी जरूरत तो कभी सिर्फ दीवानगी। मां बाप, भाई बहन मेरा खून, मेरे बच्चे ऐसे रिश्ते हैं जो वक्त जज्बात और नजदीकी के पैमानों पर अपने मायने बदलते रहते हैं।
जिन रिश्तों की चादर मैली हो जाए ओढ़ने को जी नहीं चाहे,उन्हें मोहोब्बत से संवारिए,कुछ न हो तो कुछ दूर हो जाइए।

पड़ोस, पढ़ाई और काम से जुड़े रिश्ते सबसे करीब रहते हैं इन पराए रिश्तों से कभी कभी वो अपनापन मिलता है जिसकी उम्मीद हम सगे संबंधियों से करते हैं और निराश होते हैं।

जिन्हें दिल की कह दें और दर्द न मिले सच्चे दोस्त बस दो चार ही मिल जाएं अगर तो समझिए खुदा ने अपने जैसा कोई भेज दिया।

विषय की रोचकता अचानक तब बड़ जाती है जब अचानक किसी मोड़ पर दुश्मन दोस्ती के बहाने ढूंढता है।
दिलों के दरवाजे खुले रखिए रिश्तों के पंछी बंद पिंजरों में नहीं रहते।

तर्क वितर्क के चलते जब रिश्तों में मन मुटाव और खट्टास बड़ जाए, तो सवाल करें य मुजरिम कौन !!! उम्मीदों पर खरा खुदा नहीं उतरा बंदे की क्या उकात है !

खुद को चक्रविहू में फसा मत जानिए जो आप के साथ खुश रहना चाहेंउनसे दिल लगाइए उम्मीदें कम उत्साह ज्यादा रखिए वक्त की नजाकत समझिए बहते बहते निकल जाइए।

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