अपनी अपनी उम्र को झुठलाती
पैंतालीस-पचपन-पैंसठ की क्लास
मेरी प्यारी-सी योगा क्लास।
न परिपक्व, न कमसिन,
न किशोरी, न युवती पर बड़ी प्यारी-सी उम्र से गुजरती, मेरी प्यारी-सी योगा क्लास।
कुछ व्यस्त, कुछ फुरसत से, कुछ भगदड़ मचाती
सब भूलभाल के आने को अकुलाती,
कुछ आ पाती, कुछ न आ पाती
Whats app ग्रुप से खबर सारी पाती,
मेरी प्यारी-सी योगा क्लास।
कुछ खट्टी-मीठी बातें, कुछ हास-परिहास
अपने-अपने अनुभव सुनने को नहीं,
सुनाने को उत्सुक, सुनती और सुनाती
मेरी प्यारी-सी योगा क्लास।
चलो कहीं चलते हैं सब साथ में,
एक ही जुमला दोहराती, पर जा कहीं भी न पाती,
अपने-अपने सपनों को पंख लगाती
मसूरी चलें, ऋषिकेश चलें, ताजमहल चलें
पर उड़ नहीं पाती, फिर से नए सपने सजाती
मेरी प्यारी-सी योगा क्लास।
मन जो अटक गया है, बीस या तीस में, अचानक जाग जाती तो पाती पचास में,
कब, क्यों ओर कैसे का जवाब न दे पाती
फिर खुद को मनाती और पचास-साठ के मजे उड़ाती,
एक नए जोश और उत्साह से
फिर उसी योगा क्लास में आती,
मेरी प्यारी सी योगा क्लास।
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