लगभग हम सभी हिन्दी भाषी लोगों ने प्रेमचंद्र की कोई कहानी तो जरूर पढ़ी होगी। अपने समय के उत्कृष्ट कथाकार, जो आज भी सामायिक हैं। सरल भाषा में लिखीं कथाएं, साधारण जनों के बीच से ही उठाई गई कथाएं, सभी को अपनी कहानी ही लगती है।
हमारे ही सोसायटी, ऐटीएस विलेज, के निवासी शांतनु मुखर्जी (0481), सेवा निवृत होने के बाद पूर्णरूप से हिन्दी साहित्य के विस्तार के लिए प्रयासरत हैं। प्रेमचंद्र के जन्मदिन, 31 जुलाई, के अवसर पर आप गोष्ठी का आयोजन करतें हैं — इन महान लेखक की कथाओं का पठन पाठन होता है और अपनें विचार भी रखे जातें हैं। इस वर्ष भी इसका आयोजन किया गया।
हमें कुछ उत्सुकता भी थी कि प्रेमचंद्र के बारे में उनसे कुछ और जानने की। हालांकि शांतनु जी विद्वान वक्ता हैं, अनेक समारोह, गोष्ठियों में उन्हें आमंत्रित किया जाता है और अनेक विषयों पर मैंने उन्हे सुना हैय पर, प्रतिवर्ष प्रेमचंद्र जी के जन्मदिन पर गोष्ठी के आयोजन के पीछे विशेष मंशा क्या हो सकती है। प्रश्न करने पर शांतनु जी नें बताया, प्रेमचंद्र उनके प्रिय लेखक हैं ‘‘उनके साहित्य में समाज की कुरितियों पर चोट किया गया है। स्त्रिायों को बराबरी देने के पक्ष धर थे।“ ये बाते तो हमारे मन को भी छू गईं।
साहित्य समाज का दर्पण होता है, उस समय समाज में व्याप्त कुरितियां उन्हें दुखी करतीं होंगी। हमें भी याद है अपने स्कूल के हिन्दी पाठ्य पुस्तक में पढ़ी कहानी ‘‘ईदगाह“। कहानी के उस बाल चरित्रा नें मन पर कितना असर छोड़ा था।
शांतनु जी का साहित्य और हिन्दी से लगाव विरासत में ही मिला है। इनके नाना जी नें कई पुस्तकें लिखीं थीं जो आज भी पढ़ी जातीं हैं। बंगला भाषी होने के बावजूद हिन्दी ही बोलचाल की भाषा रही। इन्होंनें एक रोचक बात बताई कि अपनें पूरे सेवा काल में हस्ताक्षर हिंदी में ही किया। सेवानिवृत होनें के बाद अब पूरा समय हिन्दी पठन पाठन, लेखन में ही व्यस्त रहतें हैं।
आज के समय में हिन्दी साहित्य को शांतनु जी जैसे विद्वान वक्ता, लेखक की ही आवश्यकता है जो निस्वार्थ भाव से हिन्दी के प्रसार के लिए कार्यरत हैं।
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