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महाकुंभ प्रयाग राज में संगम स्नान व कल्पवास का चिकित्सीय लाभ

श्री प्रयागराज को तीर्थो का राजा होने का गौरव प्राप्त है। पुराणों में माघ माह मे जब ग्रहों की स्थिति एक दुर्लभ आकाशिय संयोग में होती है तब महा
कुम्भ होता है जो आध्यात्मिक जाग्रति, व्यक्तिगत विकास ओर समृघि के लिए सबसे उपयुक्त समय होता है। सूर्य, चंद्रमा और ब्रहस्पति, शनि के संरक्षण के कारण यह दिन विशेष रूप से शुभ माने जाते हैं। इस समय स्नान, साघना, विषेश पूजा अर्चना करने से व्यक्ति के जीवन मै सकारात्मक उर्जा का संचार होता है।
आधुनिकता के इस युग में सभी सुविधाओं के होते हुए हमे इस अमूल्य समय का सदुपयोग जरूर करना चाहिए, यही सोचकर मैने भी उत्साहित मन से प्रयागराज जा कर त्रिवेणी संगम जहां गंगा, जमुना ओर सरस्वती का मिलन होता है स्नान का विचार किया जिसका जल अनेक बीमारीयों में ‘‘वेकसिनेशन’’ का कार्य करता है।


यह सोच कर हम प्रयागराज यात्रा के लिए घर से चल पड़े। 11-12 घंटे मे हम संतों के अखाड़े मे पहुंच गए। यहाँ उन्होंने हमारा स्वागत करते हुए रहने और भोजन की अच्छी व्यवस्था दी। संतों के साथ रहने का यह सबसे अच्छा समय था। रात भर कानो में सीता-राम की ध्वनी संतों की वाणी में आती रही। सुबह नित्य क्रिया से निवृत्त होकर स्नान के लिए निकल पड़े। हवा में तैरते हुए गुब्बारों पर लिखे ‘‘हेलप लाइन’’ नम्बर अपने फोन में डाल लिए। जहां पर उचित घाट दिखाई दिया वहीं पर गोता लगा कर पूजा-पाठ, दान-पुन्य करके अखाड़े के लिए प्रस्थान किया। संतों के साथ कुछ क्षण बिता कर हम अन्य साधुओं और दुर्लभ संतों के दर्शन के लिए निकल पड़े।


मार्ग में वर्तमान सरकार के आयोजन, संतों के दर्शन, सनातन धर्म की एकता, जगह-जगह होते यज्ञ, संत वाणी, भजन कीर्तन, रास लीला, मंत्रों का उच्चारण, संत समागम देखकर मन गद-गद हो गया। दुर्लभ संतों का आशीर्वाद लेने के बाद अपने गुरूजी के अखाड़े में पहुंचने पर भोजन तैयार था व हम ने संतों के साथ बैठ कर प्रसाद ग्रहण किया। संतों ने हमारा अतिथियों की तरह सम्मान किया और आशीर्वाद देकर हमारे जीवन को उमंग से भर कर उद्घार किया। यूँ लगा हमारे जीवन में फिर से नई फुर्ती ओर उल्लास का विकास हुआ है। अगले दिन सुबह संतों ने प्रसाद रूप में अपना आशीर्वाद देकर हमें विदा किया।
दिल तो यह चाहता है कि यह सुअवसर पुनः प्राप्त हो। हर हर महादेव!

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