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Sector 77 Noida

महाकुंभ – कुछ खट्टे मीठे अनुभव

प्रयागराज महाकुंभ 144 वर्षो बाद आने वाला खगोलीय घटनाक्रम है। हम लोग अपने आप को सौभाग्यशाली मान रहे है कि हम लोगों के जीवन में यह समय आया और अति सौभाग्यशाली इसलिए भी है कि जिस भूमि पर सन्तों, महात्माओं तथा बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं के चरण पड़े उस भूमि पर हम लोग भी पहुँच सके तथा उस पवित्रा जल मे स्नान कर सके जिसके साधु सन्तों ने स्नान कर जल को अति पावन, अति पुनीत तथा सकारात्मक उर्जा से परिपूर्ण कर दिया।
हमें प्रयागराज जाने का सौभाग्य 15 फरवरी को मिला। मैं (लक्ष्मी दीक्षित) मेरे पति (प्रमोद दीक्षित) तथा मेरी सखी रानी झा तथा श्री अरुण कुमार झा नोएडा से शताब्दी ट्रेन से 15 तारीख को कानपुर पहुँचे। कानपुर से पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार टैक्सी द्वारा हम लोग इलाहाबाद के लिए रवाना हुए। हमारी यह सोच थी कि फरवरी मे भीड़ कम रहेगी परन्तु हमारी सोच के विपरीत फरवरी में भीड़ हिगुणित हो गई। जिसके कारण हमें मार्ग में ही जाम का सामना करना पड़ा। धीरे-धीरे गाड़ी सरकते-सरकते हमारी गतव्य स्थान पर पहुँची। पूरी रात श्रद्धालुओ का ताॅता लगा रहा। गंगा मैया के नाम का उर्दघोष करते बड़े, बूढ़े, महिला पुरुष बच्चे चले जा रहे थे। उनका उत्साह देखने लायक था। हम लोग प्रातः काल से स्नान करने जाने के लिए प्रयासरत थे परन्तु अत्यधिक भीड़ के कारण जा नही पा रहे थे। 16 तारीख को वेहीकल जोन घोषित कर दिया था। तथा 10 कि. मी. पैदल चलने की हमारी हिम्मत नही थी। इस कारण हम सबने यह विचार किया कि बिना स्नान किए लौट जाते है तथा कानपुर के पास ठिकुर के गंगा घाट पर स्नान करेंगे। इतने मे ही चमत्कार हुआ। झा साहब के पुत्रा का फोन आया। हमने बताया कि हमलोग लौट रहे है तो उसने अपने किसी पुराने मित्रा को फोन लगाया। दीपक झा का मित्रा योगेश हमारे लिए योगेश्वर बन कट आया। हमे रसूलाबाद घाट पर शहर के बीच के रास्तो से ले गया। हम सबने वहाँ जाकर गंगा स्नान किया। स्नान करते ही सारी थकान, सारी चिन्ता गायब हो गई। हमें तो जैसे मनचाही मुरादें मिल गई। वहाँ पर केवट तथा पण्डित जी भी उपल्ब्ध थे उनको यथाशक्ति दान-दक्षिणा देकर प्रसन्नचित्रा होकर, परमपिता को बारम्बार धन्यवाद देकर प्रयागराज की तपोभूमि को नमन करते हुए हम सब खुशियाँ मनाते हुए घर को आए।

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