सीनियर सिटीजन फोरम प्रतीक विस्टेरिया के सदस्य प्रत्येक माह के तृतीय बुधवार को प्रासंगिक सामाजिक विषयों के संबंध में विचार विमर्श करते हैं।
इसी क्रम में 15 नवंबर को दीपावली पर्व के पौराणिक संदर्भ एवं पर्व पर किये जाने वाले धार्मिक अनुष्ठानों के ऐतिहासिक कारणों एवं प्रासंगिकता पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस के साथ ही इस ज्ञान को अगली पीढ़ी तक पहुँचाने की आवश्यकता पर भी चर्चा की गई।
चर्चा का आरंभ करते हुए डाॅक्टर एन के बेरी जी ने दीपावली शब्द की व्याख्या की एवं त्योहार के मनाये जाने के विभिन्न कारणों पर प्रकाश डाला। डाॅक्टर एन के बेरी ने बताया कि दीपावली = दीप+आवलिः = पंक्ति, अर्थात् पंक्ति में रखे हुए दीपक)। दीपावली या दीवाली का सामाजिक और धार्मिक दोनों दृष्टि से अत्यधिक महत्त्व है। इसे दीपोत्सव भी कहते हैं। दीपावली अर्थात् दीवाली पर्व को अन्धकार से प्रकाश की ओर ले जाने की यात्रा के रूप में भी मनाया जाता है। भारत वर्ष में विभिन्न समुदायों के लोग अपनी परम्परा अनुसार इस पर्व को मनाते हैं। जैसे कि जैन धर्म के लोग इसे भगवान महावीर के मोक्ष दिवस के रूप में मनाते हैं तथा सिख समुदाय के लोग इसे बन्दी छोड़ दिवस के रूप में मनाते है क्योंकि सिख धर्म के छठे गुरू हरगोविंद सिंह जी इसी दिन मुगल शासक जहांगीर की कैद से रिहा हुए थे। अमृतसर के स्वर्ण मन्दिर का निर्माण भी इसी दिन शुरू हुआ था।
माना जाता है कि दीपावली के दिन अयोध्या के राजा राम अपने चैदह वर्ष के वनवास के पश्चात लौटे थे और अयोध्यावासियों ने अपने परम प्रिय राजा के आगमन से प्रफुल्लित हो कर घी के दीये जलाये थे।
ऐतिहासिक दृष्टि से भारत के प्रतापी सम्राट विक्रमादित्य का राज्याभिषेक भी इसी दिन हुआ था पांडव 13 वर्ष का वनवास पूरा कर इसी दिन अपने राज्य में वापस आये थे।
दीवाली के दिन लक्ष्मी जी तथा गणेश जी की पूजा इस लिए की जाती हैं कि माता लक्ष्मी समुद्र मन्थन के दौरान इसी दिन समुद्र से प्रकट हुई थी। जल की देवी होने के कारण यह हमेशा चलायमान रहती है लक्ष्मी जी धन धान्य एवं सम्पन्नता की देवी है। गणेश जी माता लक्ष्मी के दत्तक पुत्रा है।
उन्हें माता लक्ष्मी का वरदान है कि गणेश जी की पूजा के बिना लक्ष्मी जी की पूजा पूरी नहीं होगी। हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार किसी भी शुभ कार्य के पहले गणेश जी की पूजा करते हैं।
श्री वीर भान सूद ने इस बात पर भी बल दिया कि हमारी धार्मिक मान्यताओं के ज्ञान के बारे में जानकारी हमारी भावी पीढ़ी एवं युवाओं को अवश्य होनी चाहिए जिससे कि वह मिथ्या प्रचार से भ्रमित नहीं हो।
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