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बेटी रूपी बहू
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बेटी रूपी बहू

मेरी बहू के आगमन पर मैंने अपने मन के उद्ग़ार एक कविता के माध्यम से प्रस्तुत किए है। मेरा मानना है कि अगर एक सास और बहू में माँ-बेटी का रिश्ता होगा तो रिश्ते और मज़बूत और मधुर होंगे।

छोड़ दहलीज़ बाबुल की मनीषा आई घर मेरे,

बिठा पलकों पर अरमान सजाऊँ सारे।

है तुम्हारा अभिनंदन घर के गलियारे में,

फूल बनकर महको तुम चोबारे में।

आँगन में हमारे हुआ तुमसे उजियारा,

मालिक ने जैसे चाँद हो उतारा।।

ले अब सबका हाथ अपने हाथों में,

नया परिवार, नये रिश्ते, नया घर सही,

सवाँरो घर हमारा पीहर के संस्कारों से।

रखना सामंजस्य यहाँ कुछ भी पराया नहीं।।

समझती ख़ुद को भाग्यशाली मैं,

क्यूकि मिली हो तुम मुझे बेटी के रूप में,

पुत्रवधू कह कर पुकारना मुझे गँवारा नहीं,

लगे बस माँ बेटी का रिश्ता ही सही।।

कोई बंधन तुम पर ना डालना मुझे,

बस करना इज़्ज़त सबकी ये कहना है मुझे,

पल्लवित, पुष्पित सी चहचहाना आँगन में,

ताकि बिखरें ख़ुशियाँ ही ख़ुशियाँ हमारे आँगन में।।

कोशिश करना देखना अक्स अपनी माँ का मुझमें,

मैं भी करूँगी कोशिश ममता सी छाँव देनेकी,

तुम भी मुझसे सुख दुख बाँटना सारे,

कुछ सिखलाऊँ समझाऊँ हँस कर मानना सारे।।

हो दुविधा, आशंका या संशय कभी,

समझना समझदारी से गिला शिकवा सभी,

एक दूजे से आहत ना हो ये रिश्ता कभी,

माँ बेटी की तरह समा जाएँ हम एक दूजे में यूँ ही।।

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