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बाहर जानें से पहले सोच लो…
Sector 93 Noida

बाहर जानें से पहले सोच लो…

बाहर कदम रखा तो आग बरस रही है… आग! पता है कितने लोगों की जान भी चली गई इसमें। अरे, अरे, ये युद्ध की बात नहीं चल रही है। ये तो मौसम की बात हो रही है। इस वर्ष तो पारा रूक ही नहीं रहा है। सूर्य देवता का इतना रौद्र रूप! लोग बेहाल हो गए हैं। देव, कुछ तो कृपा करो महाराज! लोग हाहाकार मचाए हुए हैं।

हर मौसम के अपनें अलग मजे होते हैं, यही तो उत्तर भारत की विशेषता है। मौसमी फल सब्जियां इसका आनंद लेना हो तो उत्तर भारत के अलावा और कहां? अलग-अलग मौसम के रूप यहीं देखनें को मिलते हैं। सर्दियों में अलाव तापते लोग, बतकहियां बनाते लोग। बसंत का रूप सौंदर्य भी यहीं देखनें को मिलेगा। हल्की सर्दियों की खुमारी यहीं मिलेगी। खेत काटते, चैती गाते ग्रामीण। सारे रस, भाव हैं यहां के मौसम में। बरसात में झूले झूलतीं महिलाएं, बच्चे – कजरी गाती, सजतीं-संवरतीं, उमंग से भरी हंसती गाती।

लेकिन अभी मौसम के रूप बदल गये, भगवान का मौसम विभाग अत्याचारी हो गया है। खूब ठिठुरते लोग, धूप के लिए तरस जाते लोगय और तो और मानसून को भी उसी ठंड के साथ जोड़ दिया। जैसे तैसे ऊबरे… तो अब गर्मी का कहर। कुछ जगहों में लोग इस तपिश के कारण अपनीं जान गंवा रहें हैं, यह दुखद है। पर्यावरणविद्य का कहना है कि यह सब हमारे ही मनमानी का परिणाम है जो अब हमें विकट मौसम झेलना पड़ रहा है। और यह सच है…
प्रकृति के प्रति अगर संवेदनशीलता, जिम्मेदारी नहीं होगी तो इसके विपरीत परिणाम तो भुगतनें ही पड़ेंगे। यह धरती किस रूप में हम अपनें बच्चों को सौंपेंगे यह सोचना होगा।

अभी तो फिलहाल गर्मी से राहत ढूंढिये बाजार में गर्मी के फल भरे पड़े हैं, आनंद उठाईए, पानी पीते रहिए, कुल्फी आईसक्रीम के मजे लीजिए। आकाश में मेघा का इंतजार करिए वही उबारेंगे अब। बस अब बरसात में ये रोना ना मचे कि कहां कहां पानी भर गया या बाढ़ आ गई। जैसा भी है स्वीकार करनें के अलावा है कोई उपाय?

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