एक तो गर्मी का सितम, ऊपर से लम्बी छुट्टियां… करें तो करें क्या? बच्चों का बोरडम कैसे कम हो। कुछ लोग परिवार समेत पश्चिम चले गए, कुछ पूरब! अरे घूमनें, और कहां? लेकिन कुछ लोग यहीं रहे, या तो जानें वाले हैं या जाकर आ चुके। अब घूमनें कोई दो महीनें तो नहीं जाएगा ना, पापा-मम्मा का काम भी तो है। फिर बच्चे क्या करें? उनके लिए भी तो कोई सोचे? तो सोचा गया। उनकी बोरडम के बारे में सोचा गया, और उनके लिए एक प्रोग्राम बनाया गया।
23 जून, रविवार, को हमारे ऐ.टी.एस. विलेज क्लब में उनके लिए मूवी दिखानें की योजना बनीं। शुभी सिंह नें पहल किया, प्रबंध किया। और बच्चे, सच्चे मन से थिएटर वाले ही भाव से आए। अपनें साथ स्नैक्स का बैग लिए, मुस्कराते हुए, मित्रों के साथ… पूरा मूवी का मूड बनाए! कुर्सियां भी थीं और नीचे गद्दा भी बिछा दिया गया, अगर गुलाटी मारनें का मन करे तो… ! पिक्चर शुरू हुई, नाम था ‘‘मोगली“ बच्चों की बड़ी पसंदीदा पिक्चर है यह जाहिर है बच्चे बड़े मनोयोग से पिक्चर देखते रहे, हंसते रहे…. मोगली के टेंशन से बच्चे भी टेंशन में आ गये। चेहरे के रंग बदलते रहे। उधर टेंशन, इधर स्नैक्स का पिटारा खुल गया।
बच्चों के व्यवहार से हम प्रभावित हुए, बच्चे अपनीं चीजों को मिल बांट के खा रहे थे। अच्छा लगा। बच्चों के साथ एकाध बड़े लोग थे, बच्चों ने उन्हें भी अपनीं चीजें खानें का अनुरोध किया। बहुत अच्छा लगा। ये बच्चों के साथ समय बितानें पर ही पता चल पाता है कि ये कितनें संवेदनशील कितनें निश्छल हैं।
धीरे-धीरे सिनेमा हाल का दृश्य घर में तब्दील हो गया, अब मोगली के साथ नीचे गद्दे पर गुलाटी भी मारी गई; वहीं कुछ बच्चे बिल्कुल संयमित बैठे रहे, बिल्कुल सीरियस!! कुल मिलाकर, घर की रोकटोक से दूर मित्रों के साथ सिनेमा का अलग ही आनंद है। इनकी भावना मोगली और उसके मित्रा के साथ जुड़ी रही। इन्हें देखकर हम भी आनंदित हो रहे थे। अब पिक्चर का टाईम तो खत्म हो गया।
हर अच्छी चीज का अंत होता है। अब घर जानें का समय आ गया था। जब तक माता-पिता लेनें आते तब तक क्यों ना नृत्य हो जाए? तो अब क्या था, पसंदीदा गानें और बच्चों की नाचनें की उर्जा। आनंद ही आनंद!! यह एक सफल प्रयोग था, जो कि आगे भी होता रहेगा। अगली बार फिर ऐसे ही प्रोग्राम का आश्वासन लेकर, बच्चे विदा हुए।
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Very good report on the show of Mogali for the children in ATS. by Meena Sharma.