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प्रशंसा और निंदा के बीच झूलता महाकुंभ
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प्रशंसा और निंदा के बीच झूलता महाकुंभ

महाकुंभ, 144 वर्षों के पश्चात होने वाला महापर्व, अपनी पूरी गरिमा के साथ 45 दिनों के पश्चात 26 फरवरी को समाप्त हो गया और अपने पीछे प्रशंसाओं और निंदाओं का अंबार छोड़ गया।

कुंभ की कथा समुद्र मंथन से जुड़ी है। समुद्र मंथन से जब अमृत कलश निकला तो देवताओं और दैत्यों में अमृत पीने के लिए छीना झपटी होने लगी और इसमें अमृत कलश से कुछ बूंदें प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में गिर गईं। इसी लिए इन स्थानों में 6 वर्ष के बाद अर्धकुंभ और 12 वर्ष के बाद पूर्णकुंभ का आयोजन होता है। 12 पूर्ण कुंभ पूरे होने पर अर्थात 144 वर्षों के बाद महाकुंभ होता है और इस बार प्रयागराज को इसके आयोजन का सुअवसर मिला। इसके लिए कई महीनों पहले से अनवरत परिश्रम करके इसके आयोजन की सफलता सुनिश्चित की गई थी क्योंकि देश विदेश से 45 करोड़ श्रद्धालुओं के आने की संभावना थी। सभी लोग गंगा, यमुना, सरस्वती के संगम में अनेकों ग्रहों की ऊर्जा से संयुक्त जल में स्नान करके पुण्य कमाना चाहते थे। इस संबंध में मैने कुछ परिचितों से बात की, उनके अनुभवों को आप तक पहुंचाने का प्रयास कर रही हूं।

पिंकी जिनके घुटनों की शल्यचिकित्सा कुछ महीनों पहले हुई थी, महाकुंभ में जाने की अत्यंत इच्छुक थीं किंतु आशंकित भी थीं, यह सुनकर कि वहां बहुत चलना पड़ता है किंतु ईश्वर की कृपा और पुलिस वालों के सहयोग से वे आसानी से संगम तक पहुंच सकीं। उन्होंने यह भी बताया कि स्नान करने के बाद जो ऊर्जा मिली उससे मेरी सारी पीड़ा गायब हो गई।

सरिता भसीन जो सीनियर सिटीजन होने के साथ अस्वस्थ भी रहती हैं, उन्होंने बताया कि ट्रैफिक जाम से वह थोड़ी परेशान थीं लेकिन पुलिस वालों ने उन्हें रायबरेली और अमेठी के रास्ते आसानी से संगम तक पहुंचाने में बहुत सहयोग दिया। वहां के सुप्रबंध और सुव्यवस्था से वे अभिभूत हैं। घाट पर बने अस्थाई टेंट, जहां नहाने के बाद कपड़े बदले जा सकते हैं अत्यंत साफ सुथरे हैं।

सुनीता पूर्णिमा के दिन स्नान की इच्छुक थीं किंतु भीड़ अधिक होने के कारण वे पहले वाराणसी गईं और विश्वनाथ जी के दर्शन के बाद प्रयागराज के लिए प्रस्थान किया। उन्होंने सोचा था कि अगर अधिक भीड़ होगी तो वे वाराणसी से वापस लौट आएंगी। किंतु जहां चाह वहां राह। उन्होंने संगम नोज में स्नान किया और स्नान करते ही सारी थकान छू मंतर हो गई। उन्होंने पुलिस वालों की बहुत प्रशंसा करते हुए कहा कि वे लोग सामान्य जनता को हर सुविधा और सहयोग देने में सदा तत्पर रहे। रस्सी के घेरे में 70, 80 से ऊपर के बुजुर्गों को सुरक्षित उनके गंतव्य तक पहुंचाना उनकी प्राथमिकता थी। लन्दन से महाकुंभ में स्नान के लिए आए मिस्टर राज ने भी वहां की व्यवस्था की भूरि-भूरि प्रशंसा की। उनके अनुसार इतनी बड़ी भीड़ को संभालना बड़ा चुनौतीपूर्ण कार्य था और जिसे प्रशासन ने बखूबी निभाया।

प्रदीप (मेरा फूल वाला) मौनी अमावस्या के दिन, जब सबसे अधिक भीड़ होती है संगम में नहाकर सुरक्षित वापस आया। उसके अनुसार जो भगदड़ हुई और जिसमें कुछ लोगों की मृत्यु भी हुई, वह जनता की गलती से ही हुई। यदि वे पुल पर नहीं सोए होते तो शायद यह हादसा न होता।

जहां मिठाई होती है, वहीं मक्खियां आती हैं अतः हमें विपक्ष के आरोपों को नजर अंदाज कर केवल सकारात्मक पक्ष को देखना चाहिए। क्योंकि कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना।

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