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Sector 93 Noida

पढ़ाई का दबाव झेलते ये बच्चे

गर्मी की छुट्टियांय ट्रेन का सफर… दादा-दादी या नानी के घर जानें का उत्साह। यात्रा का उत्साह। तब फाॅरेन जानें का इतना रिवाज नहीं था। हद से हद किसी हिल स्टेशन चले जाओ बस यही था। छुट्टियों का अलग ही मजा था। लिखनें पढ़नें से कोई मतलब नहीं, दादी नानी का लाड़ प्यार और शरारत करनें की पूरी छूट। ताश कैरम की गोंटियां बिछीं रहतीं थीं। कच्चे-कच्चे आम, फालसे, तोड़ना बंदरों की तरह कुछ खाना, कुछ बरबाद करना। क्या बेफिक्री जमाना था भई!! रिश्तों को जीना उन्हें महसूस करना। प्रकृति के सानंन्ध्य में कितनी बातें खुद ही सीख जाते थे।

पढ़ाई का इतना बोझ नहीं कि पूरा घर इसी की चिंता करता रहे। पढ़ते लिखते एक दिन अपनें पैरों पर खड़े हो जाते। अपने क्षेत्रा में आगे बढ़ते सफल हो जाते। लेकिन अब वो वक्त नहीं रहा, कड़ी प्रतिस्पर्धा का समय है। अपनें को इस स्पर्धा के लिए तैयार करना है। क्षितिज में उड़ान भरना है तो उसके लिए काबिलियत चाहिए, मजबूत पंख चाहिए और वह मजबूती देत रही है शिक्षा। जाओ उड़ जाओ उस देश जहाँ तुम्हारे सपनें पूरे हों। माता-पिता बच्चों को इसके लिए शुरू से ही तैयार करतें हैं।

अब 90ः अंक का कोई महत्व नहीं रहा। और ज्यादा लाओ… और… और ज्यादा। कितना, कितना? उफ्फ!! कहाँ रूकेगा यह? कोई नहीं बता सकता। वर्तमान नें भविष्य का पूरा भार उठाया हुआ है। पढ़ रहें हैं बच्चे। हर जगह कम्पटीशन, बहुत टफ कम्पटीशन, बच्चे झेल रहें हैं और कर रहें हैं, और अपनीं राह तलाश रहें हैं। शिक्षा अब बहुत खर्चीली भी हो गई है। माता-पिता भी स्ट्रेस से गुजर रहें हैं।

इन बच्चों के लिए शाबाशी, इनके भविष्य के लिए अनेंकों शुभकामनाएँ। एक संदेश भी प्रयत्न करते रहो, कभी भी हताश ना हों, आपके लिए एक सुनहरा भविष्य, बाँहें फैलाये इंतजार कर रहा है। बस, हौसला बनाए रखो!

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