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नींद क्यों नहीं आती मुझे

नींद क्यों नहीं आती मुझे यह समस्या तो है, पर करें क्या? हमारे कई मित्रों का भी यही रोना है। अब ये दोष सौ फिसदी भूतों का ही है। कोई भी भला इंसान अपनें घर का वास्तु रात में क्यों ठीक करेगा? क्यों कुर्सी टेबल खिसकाएगा? और तो और, फिमेल भूत का भी काफी शक है मुझे। मैंने कितनी बार आधी रात में कट कट करके चलनें की आवाज भी सुनी है, जैसे कि सैंडिल पहनी हो किसी नें। मुझे ही नहीं, मेरे कई मित्रों का यही अनुमान है।

राघव दिन भर की जद्दोजहद के बाद घर आया, अब ये उसका “उम जपउम“ है। आफिस में बास का खराब मूड, सड़क का बेतरतीब ट्रेफिक, कितनीं गालियां निकालते निकालते अब वह घर पहुंचा। जरा शांति से बैठेगा, टीवी देखेगा, माता-पिता से फोन कर उनका हाल-चाल लेगा। बच्चों के साथ भी खेलेगा। फिर इन सबके बाद कुछ सोचेगा। बस यही उसका सोचना औरों की नींद उड़ा देगा, इसका अंदाजा नहीं है उसे।

कब कुर्सियां घसीट कर कहां ले आनी है, फिर उन्हें वहीं पहुंचानीं हैं। या फिर मूवी का प्रोग्राम बन गया और लौट के आते-आते आधी रात बीत गई। ‘‘अपनीं तरह से ही तो जीयेगा ना इंसान!’’ ये भास्कर का कहना है। भास्कर नीचे वाले फ्लैट में रहता है। अक्सर वह अपनीं आधी अधूरी नींद लिए आफिस आ जाता है। वो राघव से कभी नहीं मिला। अगर भास्कर को गुस्सा आता है, तो वह खुद से ही बहस करता है फिर खुद से ही हार जाता है। फिर चुप हो जाता है।

आपके भी फ्लैट के ऊपर कई राघव होंगे, जो रात में अपनें फ्लैट में कुत्ते टहलाते होंगे ये आवाजों की वजह से मेरा अनुमान है सिर्फ। या कुर्सी सरकाते हुए इधर से उधर ले जाते होंगे। या कुछ ऐसे काम करेंगे जो कि लोगों की नींद भंग कर दे। राघव कभी नहीं सोचता कि नीचे कोई बीमार भी होगा जिसे नींद की जरूरत है , कोई बच्चा बामुश्किल सोया होगा जो अब डर कर रोनें लगा है।

ज्यादातर भास्कर सह लेतें हैं, पर कुछ लड़नें भी पहुंच जाएंगे, फिर क्या होगा ?? क्या होगा, कुछ नहीं। वैसे भी नोएडा के क्लेश तो सोशल मिडिया पर आ ही रहें हैं। तो बात ये है कि फ्लैट में रहनें के तौर तरीकें का ध्यान रखें। जीयें और जीनें दें!!

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