आज नए साल का पहला दिन! हालांकि यह दिन पिछले दिन से कोई अलग नही लग रहा है। बस कोई मिल जाता है तो हैप्पी न्यू ईयर, या नया साल मुबारक हो जी!! बाकी तो सब वैसा ही वही बर्फीली सर्दी, वही कुहासा।
पवन बड़ी देर तक रजाई में ही दुबका रहा। आज यही सोच रहा था कि आटो ना निकाले, साल का पहला दिन जरा मौज से गुजारे… क्या पता पूरा साल फिर अच्छा, मौज में ही गुजरे। फिर यही लगा कि चलो पूरा दिन क्या बर्बाद करना। थोड़ी कमाई तो कर ही ली जाय, आज बाल-बच्चों को कुछ अच्छा सा खिला दूं। आसपास के घरों से भी अब चहल-पहल की आवाजें आ रहीं थीं। रात को तो यहीं गली में गुब्बारे टांग के, गाने लगा के बच्चे खूब लचक-मचक के नाचे। कुछ बड़े लोगो ने भी मजे लिए, फिर थक-हार के नये साल का इंतजार किए बिना ही सो गए। ईधर-ऊधर छतों से झांकते एक-आध लोगों ने नये साल की बधाई दी, पवन नें भी मुस्करा कर उन्हे भी बधाई दी।
अब अपना आटो निकालने की तैयारी करनें लगा। बस वही ठियें ठिकानें कृ मेट्रो स्टेशन, माॅल, अस्पताल इन्हीं जगहों पर ठीक से सवारियां मिल जातीं हैं। अब आटो सड़क पर दौड़नें लगी तो और भी खर्चे याद आने लगे। अब आखिरी पड़ाव तो माॅल होता है। कभी भरी आटो, कभी खालीय, ऐसे ही दौड़ते-दौड़ते अब माॅल के पास गाड़ी टिका दी। अब आधे-पौनें घंटे में सिनेमा छूटनें का टाईम हो जाएगा। उसनें ईधर-ऊधर से कागज-पत्तर बीने, कुछ टहनियां कुछ पत्ते सब जोड़-जाड़ के अलाव सुलगा ली। इस ठंड में कुछ तो चैन पड़े! दिन भर ठंडी हवा के थपेड़े ही खाता रहा।
इतने में बलबीर चाय के दो कप ले आया, “ये ले गरमा-गरम चाय पी”। पवन बोला, “पहले गिलास में चाय मिलती थी, पीकर तबियत तृप्त हो जाती थी, अब तो बस इतनी है कि बस गला तर कर लो’’। ‘‘अरे पी ले… बलबीर बोला, आगे तो चार चम्मच नाप के चाय मिलेगी उसी को फूंक-फूंक के पीता रहेगा’’। इस बेतुकी सी बात पर दोनों बिना मतलब खूब हंसे। चाय पीकर और आग की गरमाई से थोड़ी राहत मिली।
पवन थोड़ा भावुक हो गया, ‘‘क्या बलबीर! साल के पहले दिन तो गाड़ी निकालने का बिल्कुल भी मन नहीं था। लेकिन आ ही गया, काली सड़क से दोस्ती निभाने। जरूरतें चैन से बैठनें कहां देतीं हैं?’’ बलबीर ने भी अपनी विवशता बताई। चलो खैर आज का दिन तो बीत गया। अभी सवारी मिलेगी, जो भी दे देगी चल दूंगा। बच्चो के लिए कुछ ले कर बस घर पहुंच जाऊंगा। पिक्चर देख के लोग बाहर आते दिखे। आटो वाले दौड़ पड़े। आटो… आटो… आईए, आईए!! ये दोनों भी सवारियों की तरफ लपके। सवारियां बैठा कर अंधेरे में ओझल हो गए। अब अलाव की आंच भी ठंढी हो चली थी… और नये वर्ष का उत्साह भी!
द्वारा मीना शर्मा (1854, ऐटीएस विलेजय; 8076456439)
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