Subscribe Now
Trending News

Anand Niketan

दान की महता

दान की महता को प्रत्येक धर्म ने स्वीकारा है और अपने समाज को दान की प्रवृति को बढावा देने के लिए उत्साहित भी किया है। आज के समाज में लोग दान तो अवश्य देते हैं परन्तु उसके पीछे एक मुख्य कारण होता है अपनी दानवीरता का प्रचार व प्रसार करना सोशल मीडिया के द्वारा या अन्य माध्यमों से। प्रश्न उठता है कि दान देने का यह स्वरूप उचित है?

भारतीय संस्कृति के अनुसार मान्यता है कि एक हाथ से परोपकार करें तो दूसरे हाथ को पता नही लगना चाहिए।

स्वामी विवेकानंद ने कहा है कर्म तो निरन्तर करते रहो, परन्तु अपने को बन्धन में मत डालो। फिर चाहे वह फोटो खिचवाने का बन्धन हो अथवा प्रसिद्धि पाने का मोह। निर्धन के प्रति किये गये उपकार पर गर्व मत करो और न उससे कृतज्ञता की ही आशा रखा बल्कि उलटे तुम्हीं उसके कृतज्ञ होओ यह सोचकर कि उसने तुम्हें दान देने का एक अवसर दिया है।

रहीम जी के दान का तरीका अनुकरणीय है वह दान देते हए अपनी निगाहें नीचे पृथ्वी की ओर रखते हुए अत्यधिक विनम्रता से दान देते थे।
तुलसीदास जी ने निम्नलिखित दोहा लिखा और रहीम जी को भेज दिए। ‘‘ऐसी देनी देंन ज्यूँ, कित सीखे हो सैन ज्यों ज्यों कर ऊंच्यो करो, त्यों त्यों निचे नैन’’
श्रीमान जी, आपने दान देने का वह अजीब तरीका कहाँ से सीखा है?

जैसे-जैसे आपके हाथ ऊपर जाते हैं आपकी आँखें नीचे की ओर घूरने लगती हैं)“ रहीम जी ने अत्यंत विनम्रता से तुलसीदास जी को उत्तर दिया,
‘‘देनहार कोई और है, भेजत जो दिन रैन लोग भरम हम पर करे, तासो निचे नैन’’

दाता कोई और है, लेकिन दुनिया मुझे बेवजह श्रेय देती है, इसलि, मैं शर्मिदगी से आंखें नीची कर लेता हूं।“ दान के स्वरूप को पहचाने।

Home
Neighbourhood
Comments