सावन का मौसम एक अजीब-सी मस्ती और उमंग लेकर आता है। चारों ओर हरियाली की जो चादर-सी बिखर जाती है, उसे देख कर सबका मन झूम उठता है। ऐसे ही सावन के सुहावने मौसम में आता है ‘तीज का त्यौहार’।
वण माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया को ‘श्रावणी तीज’ कहते हैं। उत्तरभारत में यह ‘हरियाली तीज’ के नाम से भी जानी जाती है। इस वर्ष 7 अगस्त को तीज है।
सावन का मौसम एक ऐसा समय है जब प्रकृति अपने चरम पर होती है, और तीज का त्यौहार इस मौसम के त्यौहारो की शुरुआत का प्रतीक है। यह पर्व महिलाओं द्वारा मनाया जाता है, जो अपने पतियों की लंबी उम्र, समृद्धि और खुशी के लिए व्रत रखती हैं और देवी पार्वती की पूजा करती हैं।
तीज का त्यौहार न केवल प्रेम और समर्पण का उत्सव है, इस दिन महिलाएं हरी, गुलाबी पोशाक पहनती हैं, तीज पर हाथ-पैरो में मेहंदी लगाने, हरी चूड़ियां पहनने, झूले झूलने तथा लोक-गीत गाने का विशेष महत्व है।
झूला तीज का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जगह-जगह झूले पड़ते है। युवा स्त्रिायां समूहों में गीत गा-गाकर झूले झूलती हैं। यह पर्व महिलाओं के लिए अपने जीवन में प्रेम और खुशी को बढ़ावा देने के लिए प्रेरित करता है।
तीज के दिन खास किस्म के पकवान बनाये जाते हैं। मिठाइयों में घेवर, फिरनी व गुझिया की प्रमुखता है। जिस बहु -बेटी की नयी शादी हुई होती है, उसके मायके व ससुराल वाले गुझिया, घेवर और सिंधारा लेकर जाते हैं।
तीज प्रेम, जीवन और अध्यात्म का एक रंगीन उत्सव है, जो परिवार, मित्रों और समुदाय के बीच के बंधन को मजबूत बनाता है। जब महिलाएं इस शुभ पर्व को मनाने के लिए एकत्रा होती हैं, तो वे समर्पण, प्रेम और एकता की भावना को जीवंत करती हैं।
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