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Sector 93 Noida

टाई की नाॅट, गले पड़ गयी

कुछ चीजें लगता है जैसे हम पर जबरदस्ती थोप दी गयीं है। अब ये टाई को ही ले लो। ना जाने इसका अविष्कार किस देश में हुआ, क्यों हुआ, इसका
पर्याय क्या है, क्या ढकती है, क्या सवाँरती है, कहाँ विकसित हुयी, कैसे दुनिया भर में फैल गयी, मुझे कोई ज्ञान नहीं। अब मुझे ही क्यों, कितनों को होगी इसकी जानकारी…? बस अंग्रेजों के साथ भारत में आ गयी और गले पड़ गयी।


भगवान भला करे उन स्कूल वालों का जहां मैं पढ़ा, पूरा टाई-मुक्त बचपन गुजारा। बड़े होने पर शादी-ब्याह या अन्य किसी समारोह में जाना होता था तो डैडीजी बड़ी तन्मयता से हम भाईयों के गले में टाई के छोर ना जाने कैसे-कैसे एक दूसरे में घुसा के, निकाल के, खींच के सैट करके मुस्कुराते हुए कहते थे। ‘‘अब बनी है सही नाॅट!!’’


आप भी सोच रहे होगे कि आज ये अचानक टाई-पुराण कहाँ से शुरू हो गया। हुआ कुछ इस तरह कि मेरा पुत्रा, जो तीसरी कक्षा का छात्रा है, उसने एक दिन एलान कर दिया कि अब वो इलास्टिक वाली ‘‘सुविधाजनक’’ टाई पहन कर स्कूल नहीं जाएगा। बस आ गयी नयी टाई और साथ ही साथ खड़ी हो गयी एक विकट समस्या भी कि अब इसे बांधेगा कौन। किसी मित्रा से मिन्नता कीं… बँधवाने को दी। कुछ दिनों के बाद उसने उसकी गाँठ खोल ली। वही संकट फिर खड़ा हो गया। बहुत फटकार लगाई। और टाई… टाई बेचारी पड़ गयी अलमारी के किसी कौने में।


अभी कुछ दिन पहले डैडीजी घर आए। आज सुबह-सवेरे ही वापस चले भी गए। उनके जाने के बाद जल्दी-जल्दी आॅफिस जाने की तैयारी में लग गया। बेटे को भी फटाफट तैयार कराया। थोड़ी देर भी हो रही थी। मैं गाड़ी निकाल कर तैयार था कि देखा दृ बेटा हाथ में टाई लिए चला आ रहा है। बस झुंझलाहट आ गयी दृ अब इसे बांधेगा कौन। बेटा चुपचाप पीछे की सीट पर बैठ गया। और बस फिर उसी तरह जैसे डैडीजी करते थे… टाई के छोर को पकड़ के यहाँ से घुसाना … वहाँ से निकालना। मैं गाडी चला रहा था लेकिन पूरा ध्यान बैकव्यू मिरर पर…। परफैक्ट नाॅट बाँधने के बाद बेटे ने विजयी मुस्कान के साथ उसी शीशे में मुझसे नजरें मिलाईं… झटके के साथ गर्दन उठाई और गरूर से बोला दृ ‘‘देखा!!’’

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