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जलाओ दिये पर रहे ध्यान इतना

किसी कवि ने इन पंक्तियों मे कितना सुंदर संदेश दिया है –

जलाओ दिये पर रहे ध्यान इतना,
अंधेरा धरा पर कहीं रह न जाये।


दिवाली पर्व है, प्रकाश का, आनंद का और उत्सव का। हम सभी दिवाली के कुछ समय पहले से ही अपने घरों की सफाई, रंगाई पुताई और साज सज्जा की योजना बनाने लगते हैं।नए कपड़ों की खरीददारी, मित्रों और संबंधियों को उपहार देने के बारे में विचार करने लगते हैं कि किसको क्या देना है। यह स्वाभाविक भी है क्योंकि दिवाली तो वर्ष में एक बार आने वाला प्रमुख त्योहार है जब हम अपने सगे संबंधियों और मित्रों के साथ मिलकर कुछ समय तनावमुक्त होकर खुल कर जी पाते हैं।

यहां तक तो सब कुछ ठीक है किंतु क्या हम कभी उन गरीबों के बारे में भी सोचते हैं जिनके घरों में अमावस्या का अंधकार सदा ही पसरा रहता है क्योंकि उनके पास प्रकाश के लिए न तो दिया होता है और न उनमें तेल। उनके बच्चे तरसती आंखों से दूसरे बच्चों को नए कपड़ों में सजा देखते हैं, उन्हें पटाखे जलाते, मिठाइयां कुछ खाते, कुछ फेंकते हुए देखते हैं और फिर मन मसोस कर, अपने भाग्य को कोस कर रह जाते हैं। यदि हम अपनी खुशियों का एक छोटा सा भाग उन बच्चों में भी बाँट सकें तो यह उनके अंधेरे जीवन में भी रोशनी ला सकेगी और तभी सच्च अर्थों में दीपावली हो सकेगी जब हर घर रोशन होगा।

इस संबंध में मैं स्वर्गीय रतन जी टाटा का उल्लेख करना चाहूंगी जिन्होंने अपने जीवनकाल में उन असहायों की मदद की, जिन्हें वास्तव में सहायता की आवश्यकता थी। निर्धन छात्रों को छात्रावृत्ति देकर, विकलांगों को उनके लिए आवश्यक उपकरण देकर, निःशुल्क अस्पताल खुलवाकर, ग्रामीण महिलाओं को आत्मनिर्भरता के अवसर प्रदान कर उन्होंने समाज सेवा का जो उच्च आदर्श प्रस्तुत किया, उसके लिए समाज उनका सदैव ऋणी रहेगा।

इस संदर्भ में वेलिंगटन 2 ए 25 की नन्हीं सानवी का नाम भी लेना चाहती हूं जिनके बारे में मैंने नवंबर 23 के अंक में बताया था, जिसने अपने माता पिता द्वारा आयोजित जन्मदिन पार्टी को ठुकराकर 150 वंचित बच्चों के साथ केक और खाद्य सामग्री बांटी थी और उन्हें उपहार स्वरूप एक नोटबुक भी प्रदान की थी।

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