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जब राम पधारे

सब जानते हैं कि भले व्यक्ति में बुराई और फायदा हो रहा हो तो बुरे व्यक्ति में भी अच्छे गुण ढूंढने में हम माहिर हैं। आप सबने टीवी की debates में, गली, नुक्कड़ की सामाजिक बहसों में लोगों को तर्कों, कुतर्कों के साथ यह सब करते देखा होगा।

अगर जिद पर ही अड़ गए तो दिन को रात और रात को दिन सिद्ध करके ही उठते हैं। पिछले दिनों राम, रामायण पर टिप्पणी करते कुछ वाम पंथी और राजनीतिक दल के चतुर लोगों के साथ चाय की दुकान पर पाला पड़ गया।
गांव के एक केवट रमेसरा ने राम, लक्ष्मण को अपनी झोंपड़ी, रहने को दे दी थी। सो उसे ही कटघरे में रख बात चल रही थी।

‘अबे रमेसरा, तेरा दिमाग तो नाय सरक गयो? दरोगा से बेरिफाई कराए बगैर झोंपड़ी दे दी।‘
‘भैया काहे बेरिफाई कराते? ऊह राम भए। सारे जगत में प्रसिद्ध।‘
‘कहते है राज परिवार से हैं। पिता ने वनवास करने को कहा है’।
‘तुम्हारे सामने कहित रही होगी? हैं?’
‘ऐसे ही तो बाप ने घर से नहीं निकाल दिया? कोई तो कुसूर होगा? इनका भी।’
‘और एक भाई राम तो अपना कुनबा साथ ले आया। भाई की जोरू घर छोड़ आए। ‘
‘मुझे तो सब गड़बड़ लगत है। ऐसा भी भला कहीं होये रहत, है?’
‘अर्रे बाप ने कोई गड़बड़ देखी होगी। तभी न राजपाट छीन लिया। ‘
‘पर भाई दिखने में भले घर के लगते हैं। ‘
‘उ राम की महरुवा को रावण मुआ लेई गया। ‘
‘तू तो रमेसरा चुपपए रह। भले घर की महरुआ पे कोई खराब नजर काहे डालेगा। ‘
‘जाने काह चक्कर बनाई रहिल। सभी से दरखास्त है अपनी जोरुआ ने संभाल के रखिए। ‘
‘और भैय्या झोंपड़ी देख भाल के, बेरिफाई कर के देवयो। ‘
‘हाँ भाई रावण पड़ोस में ही रहवे है।‘
हे राम!

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