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छठ पूजाः एक व्रती की नजर से

द्वारा नूपुर प्रकाश (डी-1202, सनशाइन हेलियस)

मैं ने जब छठ पूजा करने को सोचा तो लगा कि मेरे जैसे लोगों के लिए असंभव है। 36 घंटे का बिना पानी के व्रत करना अत्यंत ही मुश्किल काम था। लेकिन अब मैं सोचती हूं कि दृढ़ इच्छाशक्ति से सबकुछ संभव है और कठिन से कठिन काम पूरा हो सकता है। छठ पर्व के दौरान मेरा हौसला बढ़ाने वाले सनशाइन हेलियस के लोगों के प्यार और आत्मीयता से भी अभिभूत हूं। छठ पर्व चार दिनों में संपन्न होता है और ये चार दिनों का कठिन तप होता है। भाई दूज के अगले दिन से ही इसकी तैयारी शुरु हो जाती है। मान्यता है कि छठ पर्व के दौरान कोई भी गलती नहीं होनी चाहिए। लेकिन ये भी एक सच है कि छठ दुनिया के सबसे सरल पर्वों में से एक है जहां ना तो कोई मंत्रा है, ना ही किसी से पूजा करवाने की जरुरत होती है। यहां सिर्फ एक व्रती और उसका भगवान होता है। दुनिया में इसके लाखों उदाहरण होंगे। छठ पूजा के चार दिनों में पहला दिन होता है नहाय खाय।

दूसरे दिन के व्रत को खरना कहते हैं। इस दिन व्रत करने वाले पूरे दिन उपवास रखते हैं और इस दौरान पूरे दिन अन्न और जल दोनों का त्याग होता है। सूर्यास्त के बाद गुड़, दूध और चावल से बनी खीर और रोटी बनती हैं और इसके बाद छठी माता और भगवान सूर्य की आराधना करते हैं। पूजा के बाद इसे ही प्रसाद के रुप में ग्रहण करते हैं। इसके बाद शुरु होता है 36 घंटे की बिना अन्न जल की उपासना।

तीसरे दिन भगवान सूर्य को अर्घ्य देते हैं। खरना में प्रसाद खाने और पानी पीने के बाद अगले दिन ना तो अन्न ग्रहण करते हैं और ना ही जल। पूरे दिन उपवास के बाद शाम में डूबते हुए भगवान सूर्य को अर्घ्य देते हैं। अर्घ्य देने से पहले लोग घंटों पानी में खड़े होकर भगवान सूर्य की आराधना करते हैं।

चैथे दिन यानी अगली सुबह सूर्योदय के साथ व्रती भगवान सूर्य को अर्घ्य देते हैं और व्रत समाप्त करते हैं। 36 घंटे बगैर अन्न और जल के इस व्रत के बात व्रती गुड़ घी और आटे से बना ठेकुआ खाते हैं। इसके साथ ही छठ पर्व समाप्त होता है। छठ के प्रसाद में सबसे अहम ठेकुआ होता है। इसके अलावा केला के साथ कई प्रकार के और फल, नारियल, कसार (चावल के आटे से बना हुआ) भगवान के चढ़ाया जाता है।

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