अकसर देखने सुनने में, यही आता हैं कि आज चैथी पीढ़ी, अपने ही घर में, सम्मान की पात्रा नहीं रही हैं। उपेक्षित, महसूस कर रही है। सवाल है, विदेशो में स्थापित, बच्चों को अपने मां बापों को रखना सरल हैं क्या? या बाप वहाँ रहना सहज महसूस करेंगें?
मां बाप के, दिये गये संस्कारों में कमी हैं या बच्चों पर, अपने को समाज में, बेहतर से बेहतर, स्थापित करने का दबाव हैं। युवा, बाहरी दबाव में स्वकेन्द्रित होता जा रहा हैं। दोष किसे दिया जाये? ऐसा नही है, शिक्षा की कमी है या धन की। बहारी आकर्षण स्वाभाव पर हावी होता जा रहा हैं। हां पचास साल पहले का समय, कुछ और था। पहले समय में धन संचय की परम्परा थी, घर का मुखिया आदर्श माना जाता था। परिवार के हर सदस्य की, इच्छा व स्वाभिमान का ध्यान रखा जाता था। व्यापार पर घर के मुखिया का निर्णय सर्वोपरि होता था, त्याग की भावना थी। तीज त्योहार, सयुंक्त रूप में, मनाने की परम्परा थी। सब मिल बैठकर अपने सुखःदुख साझा करते थे, स्वाभिमान था।
अब घरों का आकार, छोटा हो गया है। एक दूसरें से, वार्तालाप का समय व अवसर नहीं है। बल्की फोन सुविधा बेहतर हैं। पढें लिखे सदस्यों में, व्यवहारिकता का अभाव हैं। दाषीे वर्ष समय हो जाता है। समय तो निकाला जा सकता हैं इच्छा शक्ति होनी चाहियें। परिवार में चैथी पीढ़ी को सम्मान मिलना ही चाहिये। उन्हीं के प्रयास सहयोग मार्ग दर्शन मे ही, बच्चों को किसी ऊचाई तक पहुंचाया हैं। ऋृण तों चुकाना ही होता हैं।
आज मां बाप बच्चों के साथ रहने में कतरातें है देश हो या विदेश, सोचते है सम्मान बना रहें। असहाय अवस्था में शरीर शिथिल हो जाने पर, आक्षित हो जाते हैं। इस समस्या को समझते हुये, आत्ममथंन तो, होना ही चहियें। परिवार का सुख दोनो के लिये क्या हो सकता हैं।
ये नहीं कि, इस समस्या के लिये युवा को ही दोषी करार दिया जायें। मां बाप को भी, अपने अपेक्षायें सीमित रखनी होंगी। व्यवहार में सतुंलन होना चाहिये। मैं तो यही सोचती हूँ सप्ताह में एक दिन मिल बैठकर अपनी उल्झन को सुलझाया जायें हर समस्या का हल बातचीत से ही सम्भव है। यह सोच भी बदल सकती हैं कि हम बोझ तो नहीं बन रहे है। अपना वर्चस्व बनाये रखना अपने पर ही निर्भर हैं, यदि आप आर्थिक रूप से सम्पन है आवश्यक दखल करने का स्वभाव नहीं हैं। सोच समझ कर सलाह दें यहीं जीवन का मंत्रा है। परिस्थित समझ कर ही निर्णय लेना श्रेयकर है। नये वातावरण में बढ़ती उम्र में, समायोजन करना कितना सरल हो सकता है यह कहा नहीं जा सकता। दोनो पक्षों पर ही निर्भर है।
मेरी राय में, जो सुख शान्ति अपनी झोपड़ी मे है, वह किसी महल में भी नहीं मिल सकती। अति विश्वास से दूर रहें। धन्यवाद!
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