जो कहीं भी नहीं छ्प सके, छाप रे! – अशोक चक्रधर
उतरते हुए वर्ष के आखिरी महीने के बीचोंबीच, गत 15 दिसम्बर, 2023 की गुलाबी सी सर्दी वाली
रंगीन शाम को, गुलमोहर सेंटर, गुलमोहर पार्क, में, सुप्रसिद्ध कवि पद्मश्री प्रोफेसर डाॅ अशोक चक्रधर की अध्यक्षता में, एक भव्य, बेहतरीन और सफल हिन्दी कवि-सम्मेलन का आयोजन किया गया गया। कवि-सम्मेलन में कवियों द्वारा पढ़ी गयी कविताओं को श्रोताओं ने तालियों की गड़गड़ाहट और भरपूर आनन्द के साथ पसन्द किया। श्रोताओं से खचाखच भरे हाॅल में कार्यक्रम लगभग दो घंटे तक चला।
शुरू में ईवेंट कन्वीनर निरुपमा वर्मा ने क्लब की ओर से सभी का अभिवादन किया। प्ररजिडेंट मनप्रीत चैधरी ने प्रोफेसर डाॅ अशोक चक्रधर और गीतकार डाॅ सुभाष वसिष्ठ का माल्यार्पण कर स्वागत-सम्मान किया। निरुपमा वर्मा ने कवयित्राी डाॅ सोनरूपा विशाल और डाॅ अलका सिन्हा का माल्यार्पण कर स्वागत-सम्मान किया।
कवि-सम्मेलन का शुभारम्भ बदायूँ से पधारीं डाॅ सोनरूपा विशाल के आकर्षक काव्य-पाठ से हुआ। सोनरूपा ने अपने संगीतबद्ध मधुर स्वर में प्रेम में डूबे हुए कई मुक्तक और गजलों का पाठ किया। उन्होंने श्रोताओं की खूब वाहवाही बटोरी। पढ़ा गया एक मुक्तक इस प्रकार है —
‘‘दर्द का आकलन नहीं होता
इसमें कोई चयन नहीं होता
प्यार में डूबना ही पड़ता है
प्यार में आचमन नहीं होता।’’
डाॅ अलका सिन्हा ने जीवन का विवेचन करती हुई, स्त्राी के पक्ष वाली, प्रेम विषयक और देश प्रेम की कविताएँ सुनाईं जिन्हें खूब पसन्द किया गया। कुछ पंक्तियाँ इस प्रकार रहीं —
‘‘जिंदगी को जिया मैंने
इतना चैकस होकर
जैसे नींद में भी रहती है सजग
चढ़ती उम्र की लड़की
कि कहीं उसके पैरों से
चादर न उघड़ जाये।’’
गीतकार डाॅ सुभाष वसिष्ठ ने तीन गीतों का सस्वर पाठ किया। संवेदना आधारित पहले गीत ‘नानी याद है आयी’ में गाँव वाली नानी के चरित्रा को उकेरा जो ममता की साक्षात् मूर्ति होती है — ‘‘झुर्रियों में लाड़ चमकेरोटियों पर घी..।’’ दूसरे ‘‘श्रीमती जी’’ गीत में पति-पत्नी के पारस्परिक सम्बन्धों में प्रेम, शिकायत व उलाहने को कोमलता के साथ मधुर स्वर में व्यक्त किया। सस्वर पाठ में बँधे तीसरे ‘‘घर’’ शीर्षक गीत में मकान व घर के अन्तर को पीड़ा के साथ प्रस्तुत किया जिसे श्रोताओं ने तालियों की भरपूर गड़गड़ाहट के साथ पसन्द किया और जो देर तक चर्चा का विषय बना रहा। उन्होंने ‘‘घर’’ को इन पंक्तियों से परिभाषित किया —
‘‘घर है पूर्ण चैन की बन्सी
घर है मुक्त हँसी बचपन सी
घर है ज्योतित ज्योतित राहें
घर है प्रेम उठी दो बाँहें’’
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे सुप्रसिद्ध कवि प्रोफेसर डाॅ अशोक चक्रधर ने अपनी हास्य व व्यंग्य कविताओं, गजलों और वाक-्पटुता से लगभग 45 मिनट तक गुदगुदाया, हँसाया, व्यंग्य-बाण छोड़े और संजीदा होकर संवेदना के धरातल से जोड़कर श्रोताओं को बाँधे रखा।
बार-बार तालियों की गड़गड़ाहट की गूँज उठती रहीं। कई कविताओं में से एक ब्रज भाषा के सौन्दर्य से सजी ‘‘चैं रे चम्पू’’ के अंदाज की कविता ‘‘मथुरा में मैट्रो’’ के अनाउंसमेंट को भी सुनाया। जैसे ही उन्होंने नाटकीय अंदाज में ‘‘राधे राधे’’ कहा, सारे श्रोता हँसी और तालियों के हो रहे। हास्य के अलावा चक्रधर जी ने बड़ी सार्थक गजलें भी कहीं। कुछ शेर इस प्रकार हैं —
‘‘शब्द देने लगे
शाप रे शाप रे शाप रे
बाप रे बाप रे बाप रे
पुण्य ही कर रहा इन दिनों
पाप रे पाप रे पाप रे
शख्स वो जल रहा है सामने
ताप रे ताप रे ताप रे
कितनी हाइट से दीर्घा से कूदे
नाप रे नाप रे नाप रे
जो कहीं भी न छ्प सके
छाप रे छाप रे छाप रे !ष्
कुछ शेर और देखें —
‘‘ कुछ दुश्मन कुछ यार खरीद
हम बैठे तैयार खरीद
नयी उमर की नयी फसल
इनसे नयी बयार खरीद
बस चुनाव आने को हैं
गीदड़ और सियार खरीद
अमरीका तो चाह रहा
तू फौरन हथियार खरीद!’’
मन को छू जाने वाली पंक्तियों की प्रस्तुति के साथ कवि-सम्मेलन का बाँधने वाला सफल संचालन डाॅ सुभाष वसिष्ठ ने किया। अन्त में निरुपमा वर्मा ने कवियों के प्रति आभार व्यक्त किया। कविताओं को रसास्वादन और अन्त तक पूरे मन से सुनने के लिए श्रोताओं को धन्यवाद दिया। साथ ही कवि-सम्मेलन के बहुत अच्छे आयोजन के लिए गुलमोहर सेंटर के मैनेजमेंट को धन्यवाद प्रदान किया।
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