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गुलमोहर पार्क में निराला-जयन्ती कवि-गोष्ठी
Gulmohar Park

गुलमोहर पार्क में निराला-जयन्ती कवि-गोष्ठी

सी-29, गुलमोहर पार्क में हिन्दी के सुप्रसिद्ध कवि पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ की जयन्ती के उपलक्ष्य में, 01 मार्च, 2025 को, ‘अग्रसर’ के तत्वावधान में आयोजित बहुत बढ़िया कवि-गोष्ठी सफलतापूर्वक सम्पन्न हुई। प्रारम्भ में वरिष्ठ कवि प्रेम बिहारी मिश्र ने निराला के चित्रा पर माल्यार्पण किया। तदनन्तर, उपस्थित सभी कवियों-हितैषियों ने उनके चित्रा के समक्ष श्रद्धासहित पुष्पांजलि अर्पित की।

फिर, गोष्ठी का संचालन करते हुए वरिष्ठ कवि डाॅ सुभाष वसिष्ठ ने कहा कि प्रायः वसन्त पंचमी को निराला जी का जन्म दिवस मान लिया जाता है। कुछ लोग और गूगल 21 फरवरी बताता है, लेकिन आधिकारिक विद्वान कीर्तिशेष डाॅ रामविलास शर्मा के अनुसार उनका जन्म दिन 29 फरवरी, 1899 है। फिर उनके गीत – ‘मैं अकेला…!’ का सुभाष वसिष्ठ ने मधुर स्वर में पाठ किया।

तदुपरान्त वरिष्ठ कवयित्राी श्रीमती ममता किरण की अध्यक्षता में कवि गोष्ठी प्रारम्भ हुई। उनकी गजल की कुछ पंक्तियाँ इस प्रकार हैं — ‘न कामयाबी मिलेगी उनको, जो बो रहे बीज नफरतों के, वतन की मिट्टी में है वो जादू, जो सबके दिल को मिला रहा है।’ वरिष्ठ गीतकार श्री प्रेम बिहारी मिश्र ने प्रेम गीत पढ़ादृ‘हम टूटे पत्ते पतझड़ के, क्या आस लगाएँ सावन से!’

वरिष्ठ नवगीत कवि व समीक्षक श्री वेद प्रकाश शर्मा ‘वेद’ ने दोहों के बाद एक नवगीत पढ़ा — ‘गीत कोई और गाना चाहता हूं, गीत/ जिसके पांव में हों धड़कनें, गूंज जिनकी/ ठेठ बहरे भी सुनें, बांझपन में/ सरसराना चाहता हूं। वरिष्ठ गीतकार डाॅ अशोक मधुप ने गीत पढ़ा ‘धरती जैसा धीरज मुझ में / जग कहता अम्बर हूँ मैं, जैसा बाहर से दिखता हूँ/ वैसा ही अन्दर हूँ मैं।’

युवा कवि श्री विनय विक्रम सिंह ने थोड़े लम्बे वक्तव्य से निराला का स्मरण बड़े सार्थक ढंग से किया। उसके बाद विनय ने नवगीत सुनाया ‘ठहरा हारिल उसी जगह पर, जहाँ खिला था फूल, तृष्णा के उपवन अब हेरें, कहाँ गन्ध की मूल!’ प्रेम सिंह ढींगरा ने एक दार्शनिक अंदाज की छन्दमुक्त कविता पढ़ी और इंदु भारद्वाज ‘कनाॅट प्लेस’ कविता पढ़ी। अमेरिका से पधारे अतिथि डाॅ सतीश मलिक ने, के.एल. सहगल के अंदाज में बहजाद लखनवी की गजल सुनायी और सुपरिचित अभिनेत्राी निरुपमा वर्मा ने शरद जोशी की व्यंग्य से भरपूर दमदार ‘चिड़िया’ कविता सुनाई। संचालन कर रहे वरिष्ठ नवगीत कवि सुभाष वसिष्ठ ने भावी प्रेम निमग्न नवगीत संग्रह ‘भेंटशुदा चश्मा’ से नगरीय पृष्ठभूमि का एक प्रेम गीत सुनाया ‘आओ हम, छन्द जियें/ खुले आम!, फुटपाथों- फुटपाथों /हाथों में हाथ लिये /चलते बेकाम!

साहित्यिक परिवेश में डूबी सभी की रचनाओं को खूब पसन्द किया गया। श्रीमती आज्ञा ढींगरा, सुश्री नीति भारद्वाज, सन्तोष वसिष्ठ, सुषमा शर्मा, सनद भारद्वाज और संजीव कुमार की गरिमामयी उपस्थिति ने, कुछ औपचारिक कुछ अनौपचारिक जीवन्त गोष्ठी को समृद्ध बनाया। संयोजक सुभाष वसिष्ठ के आभार और एक ग्रुप क्लिक के साथ सफल कार्यक्रम सम्पन्न हुआ।

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