सावन का महीना आते ही त्योहारों और उत्सवों के द्वार खुल जाते हैं, और फिर एक के बाद दूसरा और तीसरा त्योहारों का सिलसिला प्रारंभ हो जाता है। तीज, रक्षाबंधन, जन्माष्टमी, गणपति पूजा, विश्वकर्मा पूजा, नवरात्रि, दीपावलीकृऔर यह सिलसिला चलता रहता है, चैत्रा मास की नवरात्रि तक। ये सारे त्योहार जहां एक ओर भागदौड़ और संघर्ष भरे जीवन में खुशियों की बौछार कर जनमानस को कुछ राहत देते हैं, वहीं एक दूसरे से मिलने के अनेकों अवसर और सौहार्द्र को भी बढ़ाते हैं।
इसी क्रम में गणपति पूजा, जो पहले केवल महाराष्ट्र में ही होती थी, अब सम्पूर्ण भारत में होने लगी है। यह गणेश चतुर्थी से प्रारंभ होकर अनंत चतुर्दशी तक चलती है और गणपति विसर्जन के साथ समाप्त होती है। कुछ लोग गणपति को केवल डेढ़ दिन, कुछ ढाई दिन और कुछ पांच दिन सुविधानुसार रखकर विसर्जन कर देते हैं।
वेलिंगटन में इस पूजा का आयोजन 7 सितंबर को 1 सी 24 में श्रीमती अंकिता के घर किया गया, जिन्होंने पूरी श्रद्धा और निष्ठा से इसे 10 दिनों तक हर सायंकाल 7 बजे आरती और कीर्तन के साथ निभाया। इसके अतिरिक्त, दो दिन उन्होंने कीर्तन मंडली को भी बुलाकर बड़ी धूमधाम से कीर्तन करवाया। गणेश जी की प्रतिमा को अत्यंत आकर्षक एवं भव्य मंच पर स्थापित किया गया था। महिलाएं प्रतिदिन इस आयोजन में सम्मिलित होकर अपने भजनों और नृत्य से परिवेश को दिव्यता से भर देती थीं।
अनंत चतुर्दशी अर्थात 17 सितंबर को गणपति विसर्जन सुबह 10 बजे घर में ही पूजा और आरती के पश्चात किया गया। चूंकि प्रतिमा इको-फ्रेंडली थी, अतः ‘गणपति बप्पा मोरया, अगले बरस तू जल्दी आ’ के उद्घोष के साथ उसे बड़े बर्तन में रखी जलराशि में विसर्जित कर दिया गया। सभी भक्तों और गार्डों को भोजन ‘पैक्ड थाली’ में वितरित किया गया।
यहां एक प्रश्न मेरे मन में ही नहीं, कुछ और भक्तों के मन में भी उठता है कि यदि हम गणपति से कहते हैं ‘अगले बरस तू जल्दी आ’, तो दिवाली के दिन हम लक्ष्मी पूजन के साथ गणेश पूजा कैसे करते हैं, जो इस विसर्जन के केवल डेढ़ माह बाद होती है? यदि हम जन्माष्टमी के बाद कृष्ण जी या राम नवमी के बाद राम जी की मूर्ति का विसर्जन नहीं करते, तो गणेश जी और मां दुर्गा की प्रतिमाओं का विसर्जन क्यों करते हैं? इससे एक ओर जहां जल प्रदूषण होता है, वहीं दूसरी ओर फिजूलखर्ची भी होती है। यदि हम इसे सादगी और भक्ति भावना के साथ करें, तो यह संभवतः अधिक अच्छा होगा। यहां यह तर्क दिया जाता है कि पूरे साल बड़ी मूर्तियों का रखरखाव कठिन हो जाता है, अतः उनका विसर्जन कर दिया जाता है, किंतु विशाल मूर्तियों के स्थान पर हम छोटी मूर्तियां रखकर उनकी पूजा भी तो कर सकते हैं।
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