अक्टूबर का माह पूरे चहल-पहल, उत्सव का माह रहा। भक्तिभाव वाला भी था, वहीं त्यौहार का खूब जश्न भी। नवरात्रि के मौके पर डांडिया नहीं किया तो क्या किया? तो ये तो होना तय ही था। सभी निवासियों नें बढ़-चढ़ कर भाग लिया। संगीत के स्वरों के साथ थिरकते लोग, खुश खिलखिलिते हुए लोग! संगीत की धुन पर झूमते लोग, ना थकते लोग! कहां से इतनी उर्जा आती है भई? निसंदेह यह आनंद ही है उर्जा का स्र्रोत्र।
बच्चों के नृत्य भी बेहद लुभावनें थे। बच्चों की चित्रकारी का आयोजन अनूठा था। उनके बनाए चित्रा देखकर उनकी प्रतिभा पर आश्चर्य हुआ कि इतनें छोटे बच्चे कितनें सक्षम हैं।
एक और भी आयोजन था, विशिष्ट रामलीला का। ये सच में विशेष था। क्यों? आप खुद ही समझिए। एक तो ये रामलीला शुरू ही हुई लंका कांड से जब श्रीराम और रावण युद्ध के कागार पर आ खड़े हुए। रावण का दंभ अपनी चरम सीमा पर था, विधि का यही लेखा था कि भगवान स्वंय उसका संहार करें। परकाष्ठा के बाद ही विनाश होता है, यह सभी जानतें हैं। तो रावण का वध हुआ, सीता मईया के साथ राम जी लौट चले चित्राकूट। वहां भरत मिलाप हुआ और हसी खुशी सब अयोध्या चले। जहां पूरी अयोध्या दियों से जगमगा रही थी, श्रीराम जी की आगवानी में।
तो ये रही राम लीला! पर इसमें सबसे बड़ी बात ये थी की इसमें हमारे पड़ोस के गेंझा गांव के बच्चों नें इसकी प्रस्तुती की। हर उम्र के बच्चों नें इसमें भाग लिया और हर चरित्रा को जीवंत किया। इसे देखना बहुत ही सुखदायक था। इनकी जितनीं भी प्रशंसा की जाए कम है। मेहनत दिख रही थी अभिनय, वेशभूषा सभी कुछ बिल्कुल सटीक। इसका सारा श्रेय जाता है हमारे ही प्रांगण की निवासी रश्मि तिवारी को बच्चों को ढ़ूढना, अभिनय करवाना, संवाद याद करवाना, निर्देशित करना। यह कुछ कम तो नहीं था। और बच्चों नें भी उत्साहपूर्वक, खेल खेल में ही इतनीं उत्कृष्ट रामलीला कर ली। अब तो आप समझ गए होंगें, मैंने इसे एक विशेष रामलीला रामलीला क्यों कहा था? आपनें कई उत्कृष्ट रामलीलाएं देखीं होंगी पर यह विशेष थी। अनचिन्हें कलाकार थे इसमें।
निवासियों नें मिलकर फैशन शो किया जो मनोरंजक था। अब उत्सव तो सुस्वादु भोजन के बिना तो अधूरा ही माना जाएगा। तो लो स्वाद! बाजार तो लगा है, जो मन करे खाओ पियो और बहु प्रतिक्षित दिन का आनंद उठाओ।
ये रही हमारे ए.टी.स. में दशहरा उत्सव कहानी, जिसकी चर्चा हम आज भी कर लेतें हैं।





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